प्रयागराज : युवा और छात्र महाकुंभ-2025 में स्वामी विवेकानंद की विरासत का जश्न मनाएंगे

प्रयागराज : युवा और छात्र महाकुंभ-2025 में स्वामी विवेकानंद की विरासत का जश्न मनाएंगे

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  • Publish Date - January 12, 2025 / 04:50 PM IST,
    Updated On - January 12, 2025 / 04:50 PM IST

(अरुणव सिन्हा)

महाकुंभ नगर (उप्र), 12 जनवरी (भाषा) प्रयागराज में आयोजित होने वाला महाकुंभ-2025 इस बार ‘युवा महाकुंभ’ का भी साक्षी बनेगा, जो देश भर के युवाओं और छात्रों का एक विशाल समागम होगा। इससे प्रतिभागी स्वामी विवेकानंद के एक साझा सूत्र से जुड़ेंगे, जिनकी जयंती 12 जनवरी को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाई जाती है।

‘स्वामी विवेकानंद केंद्र’ द्वारा छात्र समुदाय को संगठित करने की पहल की गई है, जिसकी स्थापना 1972 में हुई थी। इसका पहला ‘यूपी चैप्टर’ 2006 में लखनऊ में स्थापित किया गया था, जिसका मूल उद्देश्य ‘मानव निर्माण और राष्ट्र निर्माण’ है।

यह एक दिलचस्प बात है कि विवेकानंद ने दिसंबर 1889 में वाराणसी की अपनी यात्रा के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) का अंतिम दौरा किया था और यह तथ्य कि अब प्रयागराज में महाकुंभ उनकी जयंती के साथ मेल खा रहा है।

विवेकानंद केंद्र के लखनऊ चैप्टर के प्रमुख 38 वर्षीय दीप नारायण पांडे ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि 20 जनवरी से विवेकानंद केंद्र महाकुंभ में ‘युवा महाकुंभ का आयोजन करेगा।

उन्होंने बताया कि इस आयोजन में युवा और स्नातक, स्नातकोत्तर, इंजीनियरिंग और प्रबंधन के छात्र, शिक्षक और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र, सभी एक दिन की कार्यशाला में भाग लेंगे, जहां स्वामी विवेकानंद के विचारों पर चर्चा की जाएगी और उनका प्रसार किया जाएगा।

पांडे ने कहा, ‘‘हम स्वामी जी के विचारों पर विमर्श करेंगे और इस बात पर चर्चा करेंगे कि उन्होंने भविष्य के भारत की कल्पना कैसे की थी। हम स्वामी जी की पुस्तकों में निहित ज्ञान पर भी चर्चा करेंगे और उसका विश्लेषण करेंगे।’’

विवेकानंद केंद्र वर्तमान में उत्तर प्रदेश में कई केंद्रों से संचालित हो रहा है, जिसमें प्रयागराज भी शामिल है। प्रयागराज विवेकानंद के मन में प्रमुखता से अंकित था। यह उस पत्र से स्पष्ट है जो विवेकानंद ने 20 नवंबर, 1896 को लंदन से चेन्नई (तब मद्रास) में अपने एक प्रमुख शिष्य अलासिंगा पेरुमल को लिखा था।

स्वामी ने पत्र में लिखा, ‘‘मेरी वर्तमान कार्य योजना दो केंद्र शुरू करने की है, एक कलकत्ता में और दूसरा मद्रास में, जिसमें युवा प्रचारकों को प्रशिक्षित किया जाएगा। मेरे पास कलकत्ता में एक केंद्र शुरू करने के लिए पर्याप्त धन है, जो श्री रामकृष्ण के जीवन कार्य का स्थल होने के कारण सबसे पहले मेरा ध्यान आकर्षित करता है। जहां तक ​​मद्रास वाले की बात है, तो मुझे भारत में धन मिलने की उम्मीद है। और बाद में, हम बॉम्बे और इलाहाबाद (अब प्रयागराज) जाएंगे।’’

महाकुंभ में विवेकानंद केंद्र के स्टॉल पर मौजूद अश्विनी कुमार के अनुसार, स्वामी विवेकानंद दिसंबर के आखिरी हफ्ते में बारानगर से बैजनाथ होते हुए प्रयाग (इलाहाबाद) पहुंचे थे। दरअसल, वह कलकत्ता से काशी के लिए निकले थे क्योंकि उन्हें काशी में रहकर आध्यात्मिक लाभ लेने की तीव्र इच्छा थी, लेकिन जब स्वामी विवेकानंद बैजनाथ में थे, तो उन्हें सूचना मिली कि स्वामी योगानंद (रामकृष्ण परमहंस के शिष्य) चेचक से बीमार हो गए हैं।

कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा, ‘‘अपने ‘गुरुभाई’ के बीमार होने की खबर मिलते ही स्वामी विवेकानंद तुरंत प्रयाग के लिए रवाना हो गए।”

उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने अपना पहला पत्र प्रयाग से बलराम बसु को 30 दिसंबर, 1889 को लिखा था। पत्र में स्वामी विवेकानंद ने उल्लेख किया है कि एक पत्र से योगानंद के खराब स्वास्थ्य की खबर मिली। स्वामीजी के पत्र से यह भी पता चलता है कि गोपाल मां, योगिन मां और निरंजन महाराज भी प्रयाग में मौजूद थे, जिन्होंने ‘कल्पवास’ करने का फैसला किया था।

स्वामी विवेकानंद ने अपने एक पत्र में लिखा है, ‘‘यहां के लोग मुझसे माघ का महीना यहीं बिताने का आग्रह कर रहे हैं, लेकिन मैं वाराणसी जा रहा हूं। गोपाल मां और योगिन मां यहां कल्पवास करेंगी, हो सकता है कि निरंजन भी यहीं रहें। मुझे नहीं पता कि योगानंद क्या करेंगे।’’

स्वामी ने प्रयाग में कई विद्वानों और संतों से मुलाकात की, लेकिन कोई विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं है। प्रयाग प्रवास के दौरान स्वामी विवेकानंद ने प्रयाग किला, अलोपी माता मंदिर, भारद्वाज मुनि आश्रम आदि स्थानों का भ्रमण किया था।

इस बीच, प्रयागराज के रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया, ‘‘स्वामी विवेकानंद 1900 से पहले प्रयागराज आए थे। वह अपने एक भक्त के घर ठहरे थे, जिसका नाम बनर्जी था। बनर्जी का घर चौक (प्रयागराज का इलाका) में था।’’

जब उनसे पूछा गया कि क्या स्वामी विवेकानंद ने कुंभ के दौरान गंगा नदी या संगम में डुबकी लगाई थी, तो पदाधिकारी ने कहा कि इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है।

स्वामी विवेकानंद, जिन्हें उनके संन्यासी जीवन में नरेंद्र नाथ दत्त के नाम से जाना जाता था, का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता के एक कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ था।

प्रयागराज में महाकुंभ मेला पौष पूर्णिमा (13 जनवरी) को पहले प्रमुख स्नान के साथ शुरू होगा, जबकि शिवरात्रि (26 फरवरी) के दिन अंतिम प्रमुख स्नान के साथ संपन्न होगा।

भाषा अरुणव आनन्द नेत्रपाल शफीक

शफीक