पोक्सो पीड़िता को अदालत में दोबारा सदमा नहीं लगना चाहिए : अदालत

पोक्सो पीड़िता को अदालत में दोबारा सदमा नहीं लगना चाहिए : अदालत

पोक्सो पीड़िता को अदालत में दोबारा सदमा नहीं लगना चाहिए : अदालत
Modified Date: November 29, 2022 / 08:55 pm IST
Published Date: August 11, 2022 5:54 pm IST

नयी दिल्ली, 11 अगस्त (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीड़िता के अदालत की कार्यवाही के दौरान उपस्थित होने से उस पर गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि यह पीड़िता के हित में है कि उसे फिर से आघात नहीं पहुंचे।

न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने अदालती कार्यवाही के दौरान दलीलों में पीड़िता की ईमानदारी और चरित्र पर संदेह करने वाले दावे शामिल होते हैं वहीं पीड़िता को उसी स्थान पर उपस्थित होने के लिए मजबूर किया जाता है जहां आरोपी भी मौजूद होता है।

अदालत ऐसे अभियुक्त की अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसे अपनी ही बेटी के साथ यौन दुर्व्यवहार को लेकर पोक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) कानून और भारतीय दंड संहिता के दोषी ठहराया गया था। उसने अदालतों में पीड़ितों की उपस्थिति को नियंत्रित करने के संबंध में दिल्ली राज्य के साथ-साथ उच्च न्यायालय के कानूनी सेवा प्राधिकरण के रुख स्पष्ट करने को कहा।

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अदालत ने एक अगस्त को यह आदेश दिया। अदालत ने इस मुद्दे पर अपीलकर्ता के वकील के सुझावों पर भी गौर किया। इस मामले में अपीलकर्ता ने अपनी अपील के लंबित रहने तक 10 साल के सश्रम कारावास और जुर्माने की सजा को निलंबित रखने का अनुरोध किया है।

अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता के राजस्थान जाने की संभावना है जहां उसकी पत्नी और पीड़िता रह रही है तथा अगर उसे राहत नहीं दी गई तो उसे अपील की सुनवाई के बिना ही पूरी सजा काटनी पड़ सकती है।

उसने कहा कि उसकी सजा में केवल एक वर्ष और लगभग नौ महीने की अवधि बाकी है और उसकी सजा को निलंबित करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही अदालत ने अपीलकर्ता को 20,000 रुपये की स्थानीय जमानत के साथ एक निजी मुचलके पर रिहा करने का निर्देश दिया और निर्देश दिया कि वह ‘किसी भी परिस्थिति में राजस्थान का दौरा नहीं करेगा।’’

अदालत ने अपीलकर्ता को यह भी निर्देश दिया कि वह अपनी पत्नी या पीड़िता के संपर्क में नहीं रहेगा तथा जब उसकी अपील पर सुनवाई होगी तो वह उपस्थित रहेगा।

भाषा अविनाश माधव

माधव


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