प्रधानमंत्री, गृह मंत्री हैं ‘मास्टर डिस्टोरियन’, उनसे सत्य और तथ्य की उम्मीद करना बेकार: कांग्रेस

प्रधानमंत्री, गृह मंत्री हैं ‘मास्टर डिस्टोरियन’, उनसे सत्य और तथ्य की उम्मीद करना बेकार: कांग्रेस

  •  
  • Publish Date - December 18, 2024 / 12:50 PM IST,
    Updated On - December 18, 2024 / 12:50 PM IST

नयी दिल्ली, 18 दिसंबर (भाषा) कांग्रेस ने संविधान में पहले संशोधन को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह द्वारा देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश का आरोप लगाए जाने की पृष्ठभूमि में बुधवार को पलटवार किया तथा आरोप लगाया कि सत्तापक्ष के ये दोनों नेता ‘मास्टर डिस्टोरियन’ (तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने के महारथी) हैं।

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री से सत्य तथा तथ्य पर कायम रहने की उम्मीद करना बेकार है।

रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘अनुच्छेद 19(2), 15(4), और 31(बी) को प्रथम संशोधन के माध्यम से 18 जून, 1951 को भारत के संविधान में जोड़ा गया था। एक प्रवर समिति ने संबंधित विधेयक पर विचार किया था।’’

उन्होंने समिति की रिपोर्ट का लिंक साझा करते हु कहा, ‘‘अपने असहमति नोट के पैरा 2 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने लिखा था: 19(2) में ‘प्रतिबंध’ से पहले ‘उचित’ शब्द का जुड़ना एक बहुत ही अच्छा बदलाव है। यह 19(2) को न्यायसंगत बनाता है और मैं देश में नागरिकों के स्वतंत्रता की रक्षा के लिए इस बदलाव के महत्व को कम नहीं करना चाहता।”

रमेश के अनुसार, यह ‘उचित’ शब्द वास्तव में पंडित नेहरू ने स्वयं जोड़ा था।

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘अनुच्छेद 19 (2) सरदार पटेल द्वारा 3 जून, 1950 को नेहरू को लिखे गए एक पत्र का अनुसरण करता है। अनुच्छेद 15(4) तब के मद्रास में चंपकम दोराईराजन मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र की शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण को खारिज किए जाने के बाद आया। अनुच्छेद 31(बी) उच्चतम न्यायालय द्वारा बिहार, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में जमींदारी उन्मूलन कानूनों को रद्द करने के परिणामस्वरूप आया था।’’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने वाले दोनों ‘‘मास्टर डिस्टोरियन’’ – प्रधानमंत्री और गृह मंत्री पहले संशोधन की इस पृष्ठभूमि पर चुप रहे क्योंकि उन्हें अपने पसंदीदा लक्ष्य पर हमला करना था। लेकिन इस जोड़ी से सत्य और तथ्य पर पूरी तरह से कायम रहने की उम्मीद करना बेकार है।’’

भाषा हक हक माधव

माधव