2019 में आए दमे के एक तिहाई मामले पीएम2.5 के लंबे समय तक संपर्क में रहने से जुड़े: अध्ययन

2019 में आए दमे के एक तिहाई मामले पीएम2.5 के लंबे समय तक संपर्क में रहने से जुड़े: अध्ययन

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  • Publish Date - October 28, 2024 / 04:06 PM IST,
    Updated On - October 28, 2024 / 04:06 PM IST

नयी दिल्ली, 28 अक्टूबर (भाषा) साल 2019 में वैश्विक स्तर पर दर्ज किए गए दमे के लगभग एक तिहाई मामले प्रदूषक कणों पीएम2.5 के कारण प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क से संबंधित थे। यह दावा करते हुए अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि यह अध्ययन वायु प्रदूषण और दमे के बीच संबंधों पर ‘पर्याप्त सबूत’ प्रदान करता है।

दक्षिण एशियाई देशों सहित 22 देशों में 2019-2023 तक किए गए 68 अध्ययनों की समीक्षा से पता चला है कि पीएम2.5 में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से, बचपन या वयस्क अवस्था में दमा होने का जोखिम 21 प्रतिशत से अधिक बढ़ जाता है।

श्वसन में समस्या संबंधी स्थिति घरघराहट, खांसी और सांस फूलने जैसे बार-बार होने वाले लक्षणों से चिह्नित होती है और जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से खराब कर सकती है।

मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री के इस अध्ययन के प्रथम लेखक रुइजिंग नी ने कहा, ‘‘हमारा अनुमान है कि 2019 में वैश्विक स्तर पर, दमे के लगभग एक तिहाई मामले लंबे समय तक पीएम2.5 के संपर्क में रहने के कारण आए। इनमें 6.35 करोड़ मौजूदा मामले और 1.14 करोड़ नए मामले हैं।’’

हालांकि, साक्ष्यों से पता चला है कि लंबे समय तक सूक्ष्म कणों के प्रदूषण के संपर्क में रहना दमा होने का जोखिम वाला कारक है, लेकिन शोधकर्ताओं ने कहा कि पहले के अध्ययनों में विसंगतियों के कारण इसके संभावित स्वास्थ्य जोखिम पर बहस जारी है।

हालांकि, ‘वन अर्थ’ नामक पत्रिका में प्रकाशित उनके विश्लेषण में पाया गया कि ‘‘लंबे समय तक पीएम2.5 के संपर्क में रहने से बच्चों और वयस्कों दोनों में दमे या अस्थमा का जोखिम काफी बढ़ जाता है और यह वैश्विक स्तर पर अस्थमा के 30 प्रतिशत (लगभग) मामलों से जुड़ा है’’।

अध्ययन में पाया गया कि प्रभावितों में बच्चों की संख्या सबसे अधिक है जो 60 प्रतिशत से ज्यादा है। फेफड़े और प्रतिरक्षा प्रणाली, वयस्क जीवन की शुरुआत तक पूरी तरह से परिपक्व हो जाते हैं। यही कारण है कि बच्चों को वायु प्रदूषण के प्रति अधिक संवेदनशील माना जाता है, क्योंकि इसके संपर्क में आने से वायुमार्ग में सूजन और अति-प्रतिक्रिया हो सकती है।

अनुसंधानकर्ताओं के अलावा, पिछले शोधों में भी इस बात पर सीमित तथ्य हैं कि पीएम2.5 प्रदूषण निम्न और मध्यम आय वाले देशों में लोगों को कैसे प्रभावित करता है, जहां की आबादी आमतौर पर वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के संपर्क में रहती है और पीएम2.5 का अधिक बोझ उठाती है।

महामारी विज्ञान मॉडल का उपयोग करते हुए, अध्ययन दल ने अनुमान लगाया कि लगभग 1.2 लाख अतिरिक्त मौतें अस्थमा के कारण हुईं। मौत के ये मामले विशेष रूप से वयस्कों में सामने आए, उनमें से अधिकांश भारत और चीन में हुईं, इसके बाद दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका और पश्चिम एशिया के देशों में हुईं।

लेखकों ने कहा कि पीएम2.5 के अपेक्षाकृत कम स्तर के संपर्क के बावजूद, उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में भी अस्थमा का प्रसार हुआ।

मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री के निदेशक, संबंधित लेखक याफांग चेंग ने कहा, ‘‘हमारे निष्कर्ष नीति निर्माताओं के लिए वायु प्रदूषण से लगातार निपटने के लिए कड़े कानून लागू करने की तत्काल आवश्यकता को उजागर करते हैं। साथ ही व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपाय जैसे मास्क पहनना, व्यक्तिगत जोखिम को कम करने और अस्थमा के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं।’’

भाषा वैभव नरेश

नरेश