One Nation One Election Bill: भाजपा ने मंगलवार (17 दिसंबर) के लिए अपने सांसदों के लिए तीन लाइन का व्हिप जारी किया है। मिली जानकारी के अनुसार एक देश एक चुनाव बिल मंगलवार को लोकसभा में दोपहर 12 बजे पेश किया जा सकता है। माना जा रहा है कि केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ये बिल पेश कर सकते हैं।
केंद्र सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन कानून के लिए मंगलवार को लोकसभा में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल दी यूनियन टेरेटरीज लॉ (संशोधन) बिल 2024 और संविधान संशोधन बिल(100 और 29) को पेश करेंगे। माना जा रहा है वन नेशन वन इलेक्शन बिल लाने से पहले सरकार को चार संविधान संशोधन बिल पेश करना है। उसी दिशा में ये सबसे दो बिल पेश किए जाएंगे। इन दोनों बिल के पास होने के बाद दो और संविधान संशोधन बिल पेश किए जाएंगे। जिसके बाद ही देश में एक देश एक चुनाव को लागू किया जा सकेगा।
One Nation One Election Bill: सूत्रों के मुताबिक वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर NDA के सभी घटक दलो से चर्चा हो चुकी है और सभी दल इसके पक्ष में हैं। सूत्रों के मुताबिक विपक्षी दल इसका विरोध सिर्फ राजनैतिक कारणों से कर रहे हैं। सरकार को इस बिल को संसदीय समिति में भेजने में कोई आपत्ति नहीं है। लोकसभा में मंगलवार के एजेंडा की अपडेटड कार्यसूची सामने आने के बाद सारे कयास साफ हो जाएंगे।
बीते शुक्रवार को लोकसभा के जारी बिजनेस लिस्ट में इस बिल को शामिल किया गया था और उसी दिन सभी सांसदों को बिल की कॉपी भी वितरित कर दी गई थी, लेकिन बाद में लोकसभा के रिवाइज्ड बिजनेस लिस्ट से बिल को हटा दिया गया था।
आपको बता दें कि एक देश एक चुनाव बिल का मकसद है कि पूरे देश में एक साथ विधानसभा और लोकसभा चुनाव करा लिए जाएं। लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के पीछे कई तरह के तर्क दिए जाते रहे हैं।
सरकार और इस बिल से जुड़ी कमिटी का दावा है कि चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होते ही सरकार कोई नई योजना लागू नहीं कर सकती है। आचार संहिता के दौरान नए प्रोजेक्ट की शुरुआत, नई नौकरी या नई नीतियों की घोषणा भी नहीं की जा सकती है और इससे विकास के काम पर असर पड़ता है।
देश को विकास में बाधा का सामना करना पड़ता है, आए दिन चुनाव में देश के संसाधन खर्च होते हैं या उलझे रहते हैं। दावा किया जाता है कि इससे सरकारी कर्मचारियों को बार-बार चुनावी ट्यूटी से भी छुटकारा मिलेगा।
देश में साल 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव एक साथ ही होते थे। साल 1947 में आजादी के बाद भारत में नए संविधान के तहत देश में पहला आम चुनाव साल 1952 में हुआ था। तब राज्य की विधानसभाओं के लिए भी साथ-साथ चुनाव कराए गए थे। लेकिन अलग-अलग चुनावों का सिलसिला साल 1957 में केरल की वामपंथी सरकार बनने के साथ टूटा, क्योंकि वहां केंद्र सरकार ने 1957 की चुनाव के बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। साल 1960 में केरल में फिर से चुनाव हुए।
यह बिल पूरे देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रावधान करता है, जिससे समय और संसाधन की बचत हो।
संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, और 174 में संशोधन करना होगा ताकि लोकसभा और विधानसभा के कार्यकाल को समान रूप से समायोजित किया जा सके।
विपक्षी दलों का कहना है कि यह केंद्र सरकार को अधिक शक्ति देने और संघीय ढांचे को कमजोर करने की कोशिश है।
इससे चुनावी खर्च में कमी आएगी, सरकारी कार्यों में तेजी आएगी और बार-बार चुनावों से होने वाली असुविधा समाप्त होगी।
सरकार का दावा है कि इससे लोकतंत्र मजबूत होगा, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि क्षेत्रीय मुद्दों की अनदेखी हो सकती है।