एक समय ‘विफलता का स्मारक’ कही गई मनरेगा योजना कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान जीवनरेखा साबित हुई

एक समय ‘विफलता का स्मारक’ कही गई मनरेगा योजना कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान जीवनरेखा साबित हुई

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  • Publish Date - December 27, 2024 / 08:57 PM IST,
    Updated On - December 27, 2024 / 08:57 PM IST

नयी दिल्ली, 27 दिसंबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को संप्रग सरकार की ‘विफलता का स्मारक’ कहा था, वह मनमोहन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल में शुरू की गईं महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक थी और 2020 में कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान यह ग्रामीण श्रमिकों के लिए जीवनरेखा साबित हुई।

मनरेगा की शुरुआत 2005 में हुई थी। संप्रग सरकार ने तब इसे ‘देश के सामने मौजूद गरीबी की चुनौती को समाप्त करने की दिशा में हमारे इतिहास का महत्वपूर्ण पड़ाव’ कहा था।

कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) ने भी ‘काम के अधिकार’ पर आधारित मनरेगा को आकार देने में अहम भूमिका निभाई थी।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार जब 2014 में आई थी तो उसने ग्रामीण रोजगार गारंटी की इस योजना की आलोचना की थी।

मोदी ने 2015 में लोकसभा में कहा था कि मनरेगा को समाप्त नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि 60 साल में गरीबी को समाप्त करने में कांग्रेस की विफलता का यह ‘जीता-जागता स्मारक’ है।

पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि देते हुए, कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा, ‘‘मनमोहन सिंह को ऐसा व्यक्ति माना जाता है जिसने 1990 के दशक की शुरुआत में भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की। उनके नेतृत्व वाली संप्रग सरकार 2004 में भारत के मतदाताओं के इस संदेश के साथ सत्ता में आई कि बड़ी संख्या में लोगों के लिए भारत चमक नहीं रहा है और बाजार ने उन्हें आर्थिक विकास का लाभ नहीं पहुंचाया है।’’

उन्होंने कहा कि संप्रग शासन के दौरान किए गए सुधारों ने ‘बाद की सरकारों’ की शत्रुता को झेला है और विशेष रूप से आर्थिक मंदी के दौर में, जिसमें कोविड भी शामिल है, इन सुधारों ने अपना महत्व दिखाया है।

डे ने कहा, ‘‘जबकि उनके मंत्रिमंडल में भी कई लोगों ने इन उपायों की आलोचना की और इनका विरोध किया, यह स्पष्ट था कि डॉ. मनमोहन सिंह ने खुद महसूस किया था कि वितरणात्मक विकास के लिए बाजार पर भरोसा नहीं किया जा सकता है और भारत में गरीबी, कुपोषण और अभाव को दूर करने के लिए आम लोगों को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाना होगा।’’

साल 2020 में जब कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन लागू किया गया था, तब मनरेगा कई लोगों के लिए जीवन रेखा साबित हुई थी, जिससे गांवों की ओर बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हो गया था।

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा मनरेगा और सहयोगात्मक अनुसंधान और प्रसार (सीओआरडी) पर नागरिक समाज संगठनों के राष्ट्रीय संघ के साथ साझेदारी में किए गए 2022 के एक अध्ययन के अनुसार, इस योजना ने सबसे कमजोर परिवारों के लिए लॉकडाउन के कारण हुई आय हानि के 20 प्रतिशत से 80 प्रतिशत के बीच की भरपाई करने में मदद की।

पूर्व नौकरशाह और कार्यकर्ता अरुणा रॉय, जो एनएसी की सदस्य थीं और जिन्होंने संप्रग सरकार के दौरान लाए गए कई अधिकार-आधारित कानूनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, ने कहा कि सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने कई तरह के सुधार पेश किए और पारदर्शिता का पक्ष लिया।

रॉय ने कहा, ‘‘मनमोहन सिंह सरकार ने मनरेगा में सामाजिक ऑडिट शुरू किया और वह जानती थी कि रोजगार गारंटी, भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और वन अधिकार अधिनियम जैसे व्यापक दायरे वाले सामाजिक क्षेत्र के कानूनों के अधिक प्रभावी कामकाज के लिए पारदर्शिता एक आवश्यक शर्त थी।’’

सिंह का बृहस्पतिवार को यहां अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे। उनके सम्मान में सात दिवसीय राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है।

भाषा वैभव माधव

माधव