ओडिशा ट्रेन हादसा: जिस स्कूल को बनाया था ‘मुर्दाघर’, अब वहां जाने से भी डर रहे हैं छात्र, गिराई जा सकती है इमारत

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  • Publish Date - June 9, 2023 / 05:54 AM IST,
    Updated On - June 9, 2023 / 05:54 AM IST

Odisha Train Accident Update News

बालासोर: ओडिशा में बहनागा उच्च विद्यालय के छात्र अपनी कक्षाओं में वापस आने से डर रहे हैं। इस विद्यालय में रेल हादसे के बाद शव रखे गये थे। ओडिशा के बालासोर में दो जून को हुए रेल हादसे में 288 यात्रियों की मौत हुई थी। (Odisha Train Accident Update News) इस दुर्घटना के तुरंत बाद, 65 साल पुराने इस स्कूल भवन में कफन में लिपटे शवों को रखा गया था।

छात्र अब इस स्कूल में आने से कतरा रहे हैं और स्कूल प्रबंधन समिति (एसएमसी) ने राज्य सरकार से इमारत को गिराने की गुहार लगाई है क्योंकि यह बहुत पुरानी है। बहनागा उच्च विद्यालय की प्रधानाध्यापिका प्रमिला स्वैन ने स्वीकार किया, “छात्र डरे हुए हैं।’’ उन्होंने कहा कि स्कूल ने “धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करने और कुछ अनुष्ठान करने की योजना बनाई है।”

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उन्होंने कहा कि स्कूल के कुछ वरिष्ठ छात्र और एनसीसी कैडेट भी बचाव कार्य में शामिल हुए थे। स्कूल और जन शिक्षा विभाग के निर्देश पर बृहस्पतिवार को स्कूल का दौरा करने वाले बालासोर के जिलाधिकारी दत्तात्रय भाऊसाहेब शिंदे ने कहा, “मैंने स्कूल प्रबंधन समिति के सदस्यों, प्रधानाध्यापिका, अन्य कर्मचारियों और स्थानीय लोगों से मुलाकात की है। (Odisha Train Accident Update News) वे पुरानी इमारत को तोड़कर उसका जीर्णोद्धार करना चाहते हैं ताकि बच्चों को कक्षाओं में जाने में कोई डर या आशंका न हो।’’

एसएमसी के एक सदस्य ने जिलाधिकारी को बताया कि स्कूल की इमारत में पड़े शवों को टेलीविजन चैनलों पर देखने के बाद, “बच्चे प्रभावित हुए हैं और 16 जून को फिर से स्कूल खुलने पर वे आने से कतरा रहे हैं।’’ हालांकि शवों को भुवनेश्वर ले जाया गया है और स्कूल परिसर को साफ कर दिया गया है लेकिन छात्र और अभिभावक डरे हुए हैं। एक छात्र ने कहा, ‘‘यह भूलना मुश्किल है कि हमारे स्कूल की इमारत में इतने सारे शव रखे गए थे।’’

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एसएमसी ने शुरू में शव रखने के लिए केवल तीन कक्षाओं की अनुमति दी थी। बाद में जिला प्रशासन ने पहचान के लिए शवों को रखने के लिए स्कूल के हॉल का इस्तेमाल किया था। एक अभिभावक सुजीत साहू ने कहा, ‘‘हमारे बच्चे स्कूल जाने से इनकार कर रहे हैं और उनकी माताएं उन्हें अब शिक्षण संस्थान भेजने की इच्छुक नहीं हैं।’’

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