India Population Report ; नई दिल्ली। देश में पिछले 65 साल में हिंदुओं की आबादी 8% कम हो गई है, जबकि इस दौरान मुस्लिम आबादी 9.84% से बढ़कर 14.09% हो गई। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी गई है। ‘धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी का देशभर में विश्लेषण’ नाम से पब्लिश रिपोर्ट में बताया गया है कि पारसी और जैन समुदाय को छोड़ दें तो भारत के सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों की आबादी में कुल 6.58% का इजाफा हुआ है।
India Population Report : रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में हिंदू आबादी 1950 में 84.68% थी, जो 2015 तक घटकर 78.06% हो गई। इस दौरान मुस्लिम आबादी का हिस्सा 1950 में 9.84% से बढ़कर 2015 में 14.09% हो गया। आजादी के तीन साल बाद ईसाई समुदाय की देश में आबादी 2.24% थी, जो 2015 में बढ़कर 2.36% हो गई। 1950 में सिख समुदाय के लोगों की संख्या देश में 1.24% थी, जिसमें इजाफा देखने को मिला और 2015 तक वे 1.85% हो गए। इस दौरान बौद्ध धर्म के अनुयायियों की संख्या भी बढ़ी है। बौद्ध आबादी की हिस्सेदारी में 1950 में 0.05% से 2015 आते-आते 0.81% की उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली। इस दौरान जैन समुदाय की हिस्सेदारी 0.45% से घटकर 0.36% हुई, जबकि पारसी आबादी 0.03% से घटकर 0.004% रह गई।
रिपोर्ट में बताया गया है कि बहुसंख्यक आबादी में गिरावट के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है। पहला नंबर म्यांमार का है, जहां बहुसंख्यक आबादी में पिछले 65 वर्षों में 10% की गिरावट देखी गई है। भारतीय उपमहाद्वीप को लेकर कहा गया है कि मालदीव इकलौता ऐसा मुस्लिम बहुसंख्यक देश है, जहां मुस्लिमों की आबादी में गिरावट हुई है। मालदीव में बहुसंख्यक समूह की हिस्सेदारी में 1.47% की गिरावट आई। वहीं, बांग्लादेश में बहुसंख्यक धार्मिक समूह की हिस्सेदारी में 18% की वृद्धि हुई, जो भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़ी वृद्धि है। बांग्लादेश में मुस्लिम समुदाय बहुसंख्यक है। अगर पाकिस्तान की बात करें तो पाकिस्तान में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी में 3.75% की वृद्धि और 10% की कुल मुस्लिम आबादी में वृद्धि देखी गई।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के अध्ययन ने स्पष्ट किया कि उसने यह पता लगाने की कोशिश नहीं की कि ये परिवर्तन क्यों हुए, बल्कि यह देखने के लिए संख्याओं पर ध्यान दिया कि क्या अल्पसंख्यकों को समाज में कम या ज्यादा प्रतिनिधित्व मिल रहा है। अध्ययन में कहा गया है, “बहुसंख्यक आबादी की हिस्सेदारी में कमी और इसके परिणामस्वरूप अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी में वृद्धि से पता चलता है कि सभी नीतिगत कार्यों, राजनीतिक निर्णयों और सामाजिक प्रक्रियाओं का शुद्ध परिणाम समाज में विविधता बढ़ाने के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करना है।”
प्रधानमंत्री की आर्थिक परिषद द्वारा। स्टडी के ऑथर्स का कहना है कि भारत का रुझान बताता है कि “समाज में विविधता को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल माहौल है”। स्टडी में अल्पसंख्यकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए भारत की नीतियों और संस्थानों की सराहना की गई है। ऑथर्स ने निष्कर्ष निकाला, “इन प्रगतिशील नीतियों और समावेशी संस्थानों के परिणाम भारत के भीतर अल्पसंख्यक आबादी की बढ़ती संख्या में परिलक्षित होते हैं।”
ऑथर्स के अनुसार, भारत में संख्या में बदलाव बहुमत में गिरावट के वैश्विक रुझान के अनुरूप है। कुछ मामलों में, जैसे ऑस्ट्रेलिया, चीन, कनाडा, न्यूजीलैंड जैसे देशों और कुछ पूर्वी अफ्रीकी देशों में, जनसंख्या में बहुसंख्यक समुदाय की हिस्सेदारी में भारत की तुलना में अधिक गिरावट देखी गई। “167 देशों में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदायों की हिस्सेदारी, 1950-2015 से औसतन 22% कम हो गई है। परिवर्तन लाइबेरिया में 99% की कमी से लेकर नामीबिया में 80% की वृद्धि तक भिन्न है। 123 देशों में कमी का अनुभव हुआ बहुसंख्यक संप्रदाय का हिस्सा, “अध्ययन में उल्लेख किया गया है।
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