डल्लेवाल को अस्पताल में भर्ती कराये जाने का विरोध कर रहे उनके शुभचिंतक नहीं: उच्चतम न्यायालय

डल्लेवाल को अस्पताल में भर्ती कराये जाने का विरोध कर रहे उनके शुभचिंतक नहीं: उच्चतम न्यायालय

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  • Publish Date - December 28, 2024 / 05:42 PM IST,
    Updated On - December 28, 2024 / 05:42 PM IST

नयी दिल्ली, 28 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक महीने से अधिक समय से अनशन कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को अस्पताल नहीं ले जाने के लिए शनिवार को पंजाब सरकार को कड़ी फटकार लगाई। साथ ही न्यायालय ने किसान नेता को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने में बाधा डालने के लिए आंदोलनकारी किसानों की मंशा पर भी संदेह जताया।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की अवकाशकालीन पीठ ने अभूतपूर्व सुनवाई करते हुए पंजाब सरकार को डल्लेवाल को अस्पताल में भर्ती करने के वास्ते राजी करने के लिए 31 दिसंबर तक का समय दिया और स्थिति के अनुसार केंद्र से सहायता मांगने की स्वतंत्रता दी।

पंजाब सरकार ने डल्लेवाल को अस्पताल ले जाने में असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि उसे प्रदर्शनकारी किसानों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है जिन्होंने डल्लेवाल को घेर लिया है और वे उन्हें अस्पताल नहीं ले जाने दे रहे।

पीठ ने पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह से कहा, ‘‘यह सब किसने होने दिया? यह जनशक्ति समय-समय पर और व्यवस्थित रूप से विरोध स्थल पर कैसे पहुंची? हम ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहते क्योंकि इससे स्थिति और बिगड़ेगी। जब तक किसानों द्वारा उठाई गई मांगों के उद्देश्य से यह जमावड़ा हो रहा है, तब तक यह समझ में आता है।’’

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ‘‘अपनी मांगों को उठाने और लोकतांत्रिक तरीके से अपनी शिकायतें व्यक्त करने के उद्देश्य से शांतिपूर्ण आंदोलन करना समझ में आता है। लेकिन तत्काल चिकित्सा सहायता की जरूरत वाले किसी व्यक्ति को अस्पताल ले जाने से रोकने के लिए किसानों का इकट्ठा होना पूरी तरह से समझ से परे है।’’

सिंह ने पीठ से कहा कि विशेषज्ञों की एक टीम ने प्रदर्शन स्थल का दौरा किया और डल्लेवाल को अस्पताल में भर्ती होने एवं चिकित्सकीय सहायता लेने के लिए मनाने की कोशिश की।

उन्होंने कहा, ‘‘उन्होंने (डल्लेवाल ने आईवी) ड्रिप समेत किसी भी प्रकार की चिकित्सकीय सहायता लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया है कि इससे आंदोलन का उद्देश्य कमजोर हो जाएगा।’’

इससे नाराज पीठ ने पंजाब सरकार को स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने का जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि जो किसान नेता डल्लेवाल को अस्पताल नहीं ले जाने दे रहे, वे आत्महत्या के लिए उकसाने का आपराधिक कृत्य कर रहे हैं।

न्यायमूर्ति कांत ने सिंह से कहा कि शायद अदालत को ऐसा लगता है कि राज्य सरकार खुद नहीं चाहती कि डल्लेवाल को कोई चिकित्सा सहायता मिले।

न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘‘अगर किसी वैधानिक कार्रवाई का विरोध होता है, तो आपको उससे उसी तरह निपटना होगा जैसे कानून प्रवर्तन एजेंसियां ​​आमतौर पर करती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि डल्लेवाल पर किसी तरह का दबाव है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कुछ किसान नेता हैं, हम उनके आचरण पर टिप्पणी नहीं करना चाहते। अगर वे उन्हें वहां मरने दे रहे हैं तो वे किस तरह के नेता हैं। ये लोग कौन हैं? क्या वे डल्लेवाल के जीवन को बचाने में रुचि रखते हैं या वे चाहते हैं कि वह वहीं मर जाए? उनका इरादा संदिग्ध है।’’

पीठ ने डल्लेवाल के साथ आए कुछ किसान नेताओं के आचरण को भी आश्चर्यजनक और संदिग्ध बताया।

पीठ ने सिंह से कहा, ‘‘हम इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहते कि वे किस तरह का आचरण प्रदर्शित कर रहे हैं। डल्लेवाल राज्य के शीर्ष किसान नेताओं में से एक हैं। उन्हें (डल्लेवाल को) समझाइए कि भले ही आप उन्हें अस्पताल में भर्ती करा दें, लेकिन आप उन्हें अपना अनशन तोड़ने नहीं देंगे।’’

डल्लेवाल को अस्पताल में भर्ती कराये जाने का विरोध कर रहे किसानों पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए न्यायमूर्ति कांत ने पंजाब के शीर्ष विधि अधिकारी से कहा कि उन्हें किसान नेता को अस्पताल में भर्ती कराये जाने का विरोध कर रहे लोगों को यह बताना होगा कि वे उनके शुभचिंतक नहीं हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘वे वास्तव में एक बहुत ही मूल्यवान किसान नेता को नेतृत्व से वंचित कर रहे हैं, जिन्होंने पूरी तरह से गैर-राजनीतिक तरीके से काम किया है और वह किसानों के मुद्दों के निर्विवाद नेता प्रतीत होते हैं। वे उन्हें बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने का विरोध क्यों कर रहे हैं?’’

न्यायमूर्ति कांत ने पूछा, ‘‘ईश्वर न करे, अगर कुछ हुआ तो कौन जिम्मेदार होगा? क्या आपने कभी किसानों का ऐसा समूह देखा है जो कहता है कि अगर उनके किसी साथी को चिकित्सा सहायता की आवश्यकता है, तो वे उन्हें (अस्पताल में) नहीं ले जाने देंगे।’’

पीठ ने पंजाब के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक से भी बात की और कहा कि अदालत को उम्मीद नहीं है कि राज्य सरकार प्रदर्शनकारी किसानों पर अवांछित बल का इस्तेमाल करेगी, लेकिन जमीनी स्तर पर मौजूद अधिकारी स्थिति को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं और उन्हें यह देखने की जरूरत है कि क्या रणनीति अपनाई जानी चाहिए।

जब न्यायमूर्ति धूलिया ने इस मुद्दे के संभावित समाधान पर सुझाव मांगे तो सिंह ने कहा, ‘‘या तो समझौता है या टकराव। हमने सुलह का सुझाव दिया है। यदि केंद्र सरकार किसानों के साथ बातचीत करती है, तो डल्लेवाल को चिकित्सा इलाज के लिए राजी किया जाएगा।’’

न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि अदालत राज्य सरकार और केंद्र के बीच राजनीतिक समीकरण को भी समझती है, लेकिन अभी अदालत की प्राथमिकता डल्लेवाल को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराना है।

न्यायमूर्ति कांत ने पंजाब के महाधिवक्ता से कहा, ‘‘हमारे मुंह में अपने शब्द डालने की कोशिश मत कीजिए। हम राजनीतिक स्थिति से अवगत हैं। यह एक संवैधानिक न्यायालय है और कोई भी पूर्व शर्त हमें स्वीकार्य नहीं है।’’

डल्लेवाल फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी सहित किसानों की विभिन्न मांगों को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए 26 नवंबर से खनौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन कर रहे हैं।

किसान सुरक्षाबलों द्वारा दिल्ली में प्रवेश से रोके जाने के बाद से संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के बैनर तले 13 फरवरी से पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू तथा खनौरी बार्डर पर डेरा डाले हुए हैं।

भाषा

देवेंद्र माधव

माधव