नयी दिल्ली, 23 जुलाई (भाषा) राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने पराली को अन्यत्र स्थानांतरित करने के बजाय खेतों में ही उसके प्रबंधन के बारे में पंजाब से कई प्रश्न पूछे हैं।
एनजीटी राज्य में पराली जलाने से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी। पराली जलाने को अक्सर वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, खासकर सर्दियों के दौरान राष्ट्रीय राजधानी में।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि अधिकरण ने धान की फसल के अवशेषों का ‘इन-सिटू’ (मूल स्थान) विधि से प्रबंधन के बारे में विशिष्ट जानकारी मांगी थी, क्योंकि यह एक “महत्वपूर्ण तरीका” है, जिसमें मशीनों की मदद से बचे हुए ठूंठ और धान की जड़ों को हटाया जाता है।
धान की पराली का मूल स्थान पर प्रबंधन मुख्य रूप से कृषि मशीनों द्वारा किया जाता है।
पीठ ने कहा कि इस मुद्दे के समाधान के लिए राज्य सरकार ने बताया है कि 2023 में कुल 1.15 करोड़ टन धान की पराली का विभिन्न ‘इन-सीटू’ विधियों द्वारा प्रबंधन किए जाने का अनुमान है।
पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति एके त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल. भी शामिल थे।
हालांकि पिछले हफ्ते पारित आदेश में पीठ ने कहा कि राज्य सरकार की रिपोर्ट में ‘इन-सीटू’ प्रबंधन के बारे में कुछ पहलुओं का खुलासा नहीं किया गया है।
भाषा नोमान धीरज
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