एनसीपीसीआर के निर्देशों का केरल के मदरसों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा: मुस्लिम नेता

एनसीपीसीआर के निर्देशों का केरल के मदरसों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा: मुस्लिम नेता

  •  
  • Publish Date - October 13, 2024 / 06:05 PM IST,
    Updated On - October 13, 2024 / 06:05 PM IST

तिरुवनंतपुरम, 13 अक्टूबर (भाषा) मुस्लिम समुदाय के संगठनों और नेताओं ने रविवार को कहा कि मदरसों को सरकारी आर्थिक सहायता देने पर रोक लगाने की एनसीपीसीआर की अपील से केरल के मदरसों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि इन्हें राज्य में ऐसी कोई वित्तीय मदद नहीं मिलती।

इस्लामी मामलों के जानकार और समस्त केरल जमीयत उल उलेमा के नेता अब्दुल समद पुक्कोट्टूर ने कहा कि केरल में मुस्लिम समुदाय अपने खर्ज पर मदरसों का संचालन करता है और सरकारी धन स्वीकार नहीं करता।

समस्त केरल जमीयत उल उलेमा को समस्त के नाम से भी जाना जाता है, यह सुन्नी विद्वानों का एक संघ है।

मलप्पुरम में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि सामान्य शिक्षा की तरह धार्मिक शिक्षा भी छात्रों का समान अधिकार है।

उन्होंने कहा कि भारत में लोगों को अपने-अपने धर्मों का प्रचार करने, उनमें आस्था रखने और उनका पालन करने का अधिकार है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के निर्देश का केरल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि यहां कोई भी मदरसा सरकार से कोई विशेष सहायता नहीं लेता।

हालांकि, उन्होंने कहा कि कई उत्तर भारतीय राज्यों में ऐसे मदरसे और मदरसा बोर्ड जैसी संस्थाएं हैं, जिन्हें सरकारी सहायता मिलती है।

उन्होंने कहा, “केरल में मदरसे सरकार से कोई फंड नहीं मांगते। उन्हें सरकार से कोई विशेष सहायता नहीं मिलती।”

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) और इंडियन नेशनल लीग (आईएनएल) जैसे राजनीतिक दलों ने भी एनसीपीसीआर के निर्देशों की आलोचना की है।

इस बीच, सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) में दूसरे सबसे बड़े गठबंधन सहयोगी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने कहा कि मदरसों की आर्थिक सहायता पर रोक लगाने का एनसीपीसीआर का प्रस्ताव देश में मुस्लिम समुदाय को हाशिए पर डालने और अलग-थलग करने के संघ परिवार के एजेंडे का हिस्सा है।

भाकपा के राज्य सचिव बिनॉय विश्वम ने एक बयान में आयोग से प्रस्ताव वापस लेने का आग्रह किया।

एनसीपीसीआर ने मदरसों की कार्यप्रणाली पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा है कि कि जब तक वे शिक्षा के अधिकार अधिनियम का अनुपालन नहीं करते, उन्हें सरकार की ओर से दी जाने वाली सहायता बंद कर देनी चाहिए।

एनसीपीसीआर ने अपनी नयी रिपोर्ट ‘आस्था के संरक्षक या अधिकारों के उत्पीड़क?’ में कहा है कि शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 के दायरे में नहीं आने वाली धार्मिक संस्थाओं का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

रिपोर्ट के अनुसार, मदरसों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम से छूट दिए जाने के कारण इन संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित हो रहे हैं।

भाषा

जोहेब रंजन

रंजन