नयी दिल्ली, 19 दिसंबर (भाषा) शिक्षाविदों और मुस्लिम धर्मगुरुओं के एक समूह ने वक्फ (संशोधन) विधेयक पर विचार कर रही संसद की संयुक्त समिति की बैठक में बृहस्पतिवार को मसौदा कानून का समर्थन किया और उनमें से कुछ ने सुझाव दिया कि वक्फ संपत्तियों का उपयोग शैक्षणिक और स्वास्थ्य सुविधाएं खोलने के लिए भी किया जाना चाहिए।
राजस्थान वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सैयद अबुबकर नकवी, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय (लखनऊ) के पूर्व कुलपति माहरुख मिर्जा और मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद के मौलाना रजा हुसैन उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने इस विधेयक का समर्थन किया।
इन लोगों ने भारतीय जनता पार्टी के सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष अपने विचार रखे।
सूत्रों ने बताया कि नकवी ने विधेयक को प्रगतिशील बताया और कहा कि इससे देश के विकास को बढ़ावा मिलेगा तथा मौजूदा वक्फ कानून कमियों से भरा है।
उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानून में गरीब बच्चों और विधवाओं के लिए अच्छे प्रावधान हैं।
सूत्रों ने कहा कि कुछ विपक्षी सांसदों ने विधेयक के समर्थन में समिति के सामने पेश हुए कुछ लोगों द्वारा दिए गए बयान पर सवाल उठाया।
हुसैन ने कहा कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए विधेयक एक अच्छा कदम है।
सरकार ने वक्फ बोर्ड को नियंत्रित करने वाले कानून में संशोधन से संबंधित विधेयक गत आठ अगस्त को लोकसभा में पेश किया था जिसे सत्तापक्ष एवं विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक एवं चर्चा के बाद संयुक्त समिति को भेजने का फैसला हुआ था।
इस विधेयक में वर्तमान अधिनियम में दूरगामी बदलावों का प्रस्ताव रखा गया है, जिनमें वक्फ निकायों में मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना भी शामिल है।
वक्फ (संशोधन) विधेयक में वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर ‘एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995’ करने का भी प्रावधान है।
विधेयक के उद्देश्यों और कारणों के विवरण के अनुसार, विधेयक में यह तय करने की बोर्ड की शक्तियों से संबंधित मौजूदा कानून की धारा 40 को हटाने का प्रावधान है कि कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं।
यह संशोधन विधेयक केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड की व्यापक आधार वाली संरचना प्रदान करता है और ऐसे निकायों में मुस्लिम महिलाओं तथा गैर-मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
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