Muharram 2024: कब मनाया जाएगा मुहर्रम, जानिए क्या है अशूरा का महत्व और इसे मनाने की वजह?

Muharram 2024: कब मनाया जाएगा मुहर्रम, जानिए क्या है अशूरा का महत्व और इसे मनाने की वजह?

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  • Publish Date - July 15, 2024 / 06:13 PM IST,
    Updated On - July 15, 2024 / 06:13 PM IST

Muharram 2024: मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है। यह शोक और स्मरण का महीना होता है। इस महीने में, मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हैं, जो 680 ईस्वी में कर्बला की लड़ाई में हुए थे।इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 08 जुलाई 2024 से इस्लामी नव वर्ष 1446 शुरू हो चुका है। इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने जिलहिज्जा 1445 का आखिरी दिन 7 जुलाई को था। चूंकि 6 जुलाई को मगरिब के बाद का चांद नहीं दिखा, इसलिए 7 जुलाई को जुल हिज्जा का अंतिम दिन माना गया।  इस तरह मुहर्रम के 10वें दिन यानी 17 जुलाई को आशूरा मनाया जायेगा। इस दिन को अशूरा के रूप में मनाया जाता हैं। अशूरा को मुस्लिम समुदाय के लोग मातम के रुप में मनाते हैं। इस खास दिन पर लोग रोजा भी रखते हैं।

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क्या है अशूरा

‘अशूरा’ और ‘मुहर्रम’ वस्तुतः अरबी शब्द से है। मुहर्रम का शाब्दिक का अर्थ है निषिद्ध। इस्लामिक परंपरा के अनुसार मुहर्रम का महीना इस्लामिक कैलेंडर के सबसे पाक महीनों में एक है। इस समय लड़ाई झगड़े करना वर्जित होता है। अशूरा इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम की 10वीं तिथि को मनाया जाता है। इस्लाम में अशूरा को स्मृति दिवस के रूप में देखा जाता है।  यह वस्तुतः उपवास और धार्मिक समारोहों के साथ मनाया जाने वाला पर्व है, जिसमें सुन्नी समुदाय उपदेश और भोजन आदि के साथ इस उत्सव को सेलिब्रेट करते हैं। वहीं शिया मुसलमान अशूरा को शोक के रूप में मनाते हैं। इस दिन वे काले रंग के वस्त्र पहनते हैं।

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क्या है मुहर्रम की कहानी

कहा जाता है कि यजीद एक बहुत क्रूर शासक था। वह चाहता था कि औरों की तरह इमाम हुसैन भी उसके अनुसार कार्य करें, लेकिन यजीद का इमाम हुसैन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। एक दिन यजीद को पता चला कि इमाम हुसैन कर्बला में छिपा हुआ है, उसने कर्बला का पानी बंद करवा दिया, लेकिन इमाम हुसैन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। वह इमाम के दबाव के आगे नहीं झुके।

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Muharram 2024:  इसी बीच मुहर्रम की 10वीं तिथि यौम-ए-आशूरा को यजीद ने इमाम हुसैन और उनके साथियों पर आक्रमण करवा दिया। इमाम हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ यजीद की भारी-भरकम सेना का भरसक सामना किया, लेकिन संख्या में बहुत कम होने के कारण वे यजीद की सेना के सामने ज्यादा देर टिक नहीं सके, और वीरता से लड़ते हुए शहीद हो गए। इसके बाद से हर साल यौम-ए-आशूरा पर मुस्लिम समुदाय मातम मनाता है।

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