दुर्लभ असमिया पांडुलिपियों, पत्रिकाओं, पुस्तकों के 12 लाख से अधिक पन्नों का डिजिटलीकरण किया गया

दुर्लभ असमिया पांडुलिपियों, पत्रिकाओं, पुस्तकों के 12 लाख से अधिक पन्नों का डिजिटलीकरण किया गया

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  • Publish Date - January 16, 2025 / 12:09 PM IST,
    Updated On - January 16, 2025 / 12:09 PM IST

गुवाहाटी, 16 जनवरी (भाषा) असमिया भाषा की दुर्लभ पांडुलिपियों, पत्रिकाओं और पुस्तकों के 12 लाख 80 हजार से अधिक पन्नों को डिजिटल स्वरूप प्रदान किया गया है।

असम जातीय विद्यालय (एजेबी) शैक्षिक और सामाजिक-आर्थिक ट्रस्ट के अध्यक्ष नारायण शर्मा ने कहा कि यह असमिया साहित्य की सुरक्षा एवं संवर्धन में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

उन्होंने बताया कि डिजिटलीकरण का यह कार्य 36 महीनों में पूरा हुआ।

शर्मा ने कहा, ‘‘यह शोधकर्ताओं, छात्रों और विश्व स्तर पर असमिया समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण पूंजी है। इससे असम की विरासत को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी की सहायता से संरक्षित किया जा सकेगा।’’

डिजिटल रूप में संग्रहित साहित्यिक कृतियों में 26 हजार शिलालेख और वैष्णववाद, बौद्ध धर्म तथा असमिया परंपराओं पर पांडुलिपियां शामिल हैं।

यह कार्य नंदा तालुकदार फाउंडेशन (एनटीएफ) और एजेबी शैक्षिक और सामाजिक-आर्थिक ट्रस्ट के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है, जिसे असम साहित्य सभा, डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय के साथ ही ऑयल इंडिया लिमिटेड, एनआरएल और ओएनजीसी जैसी कंपनियों का समर्थन प्राप्त है।

डिजिटल संग्रह में असम की पहली पत्रिका ‘ओरुंदोई’ के लगभग सभी संस्करण के साथ ही बही, अबाहन और रामधेनु जैसे अन्य प्रतिष्ठित प्रकाशन भी शामिल हैं।

उन्होंने बताया कि इसके अलावा संग्रहालय में 33,970 पुस्तकें और 41,071 पत्रिकाएं सभी निशुल्क उपलब्ध हैं।

एनटीएफ सचिव मृणाल तालुकदार ने कहा कि दूसरे चरण का मकसद बेहतर ‘कीवर्ड’-आधारित शब्दों से खोज करने की क्षमता को सक्षम बनाने के लिए ओसीआर- कृत्रिम मेधा (एआई) प्रौद्योगिकी को एकीकृत करना है, जिससे शोधकर्ताओं और विद्वानों द्वारा इन सामग्रियों तक पहुंचने में आसानी हो सके।

भाषा यासिर वैभव

वैभव