नई दिल्ली। लोकसभा में मोदी सरकार ने शुक्रवार को सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 2019 पेश किया। कांग्रेस और टीएमसी के वर्हिगमन के चलते बिल को 9 के मुकाबले 224 मतों से प्रस्तुत करने की अनुमति दी गई है। सूचना का अधिकार संशोधित बिल में कहा गया है मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे। मूल कानून के अनुसार अभी मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों के बराबर है ।
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विपक्ष के पारदर्शिता के सवाल पर मोदी सरकार के प्रतिनिधियों का कहना है कि इस सरकार की प्रतिबद्धता पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है। उन्होंने जोर दिया कि सरकार अधिकतम सुशासन, न्यूनतम सरकार के सिद्धांत के आधार पर काम करती है। सरकार का मकसद है कि आरटीआई अधिनियम को संस्थागत स्वरूप प्रदान किया जाए। नए आरटीआई एक्ट का मकसद इसे व्यवस्थित और परिणाम देने वाला बनाना है। इससे आरटीआई का ढांचा और मजबूत होगा और यह विधेयक प्रशासनिक उद्देश्य से लाया गया है।
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सरकार ने सदन को बताया कि यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में आरटीआई अधिनियम अफरा-तफरी में बना लिया गया। उसके लिए न तो नियमावली बनायी गयी और न ही अधिनियम में भविष्य में नियम बनाने का अधिकार रखा गया। इसलिए मौजूदा संशोधन विधेयक के जरिये सरकार को कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। कानून में कई विसंगतियां हैं जिनमें सुधार की जरूरत है। मुख्य सूचना आयुक्त को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समकक्ष माना जाता है, लेकिन उनके फैसले पर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। सरकार के मुताबिक मूल कानून बनाने समय उसके लिए कानून नहीं बनाया गया था, इसलिए सरकार को यह विधेयक लाना पड़ा।
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विपक्ष का तर्क है कि इससे सूचना का अधिकार कानून कमजोर होगा। विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार जब सरकार वेतन भत्ते, कार्यकाल और सेवा शर्तें तय करेगी, इससे वह ये संस्था आजादी से काम नहीं कर पाएगी। इससे सूचना का अधिकार कानून की मूल भावना से खिलवाड़ होगा। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने तो नए संशोधन बिल को RTI उन्मूलन बिल करार दिया है। उधर, भाजपा के भी कुछ सांसद नए संशोधित बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की बात कर रहे हैं।
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सूचना अधिकार संशोधन विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि आरटीआई अधिनियम की धारा 13 मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की पदावधि और सेवा शर्तो का उपबंध करती है । इसमें उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ते और शर्ते क्रमश : मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के समान होगी। इसमें यह भी उपबंध किया गया है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन क्रमश : निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव के समान होगी।
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मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के वेतन एवं भत्ते एवं सेवा शर्ते सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के बराबर है। ऐसे में मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्तों और राज्य मुख्य सूचना आयुक्त का वेतन भत्ता एवं सेवा शर्ते उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समतुल्य हो जाते हैं। केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग, सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के उपबंधों के अधीन स्थापित कानूनी निकाय है। ऐसे में इनकी सेवा शर्तो को सुव्यवस्थित करने की जरूरत है। संशोधन विधेयक में यह उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय होगी।
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