जयपुर, 31 जनवरी (भाषा) वरिष्ठ रंगमंच निर्देशक और अभिनेता एम के रैना शुक्रवार को जयपुर साहित्य महोत्सव (जेएलएफ) के दूसरे दिन गायिका और साथी कलाकार इला अरुण के साथ आयोजित एक सत्र को बीच में छोड़कर चले गए।
‘मेमोरीज फ्रॉम द स्क्रीन एंड स्टेज’ में दोनों सहकर्मी अपने संस्मरणों पर आधारित किताब का प्रचार कर रहे थे। रैना ने ‘बिफोर आई फॉरगेट’ लिखा है और अरुण ने हाल ही में ‘पर्दे के पीछे’ लिखा है।
बातचीत के दौरान एक समय पर, इला अरुण अपने नवीनतम नाटक ‘पीर घणी’ पर चर्चा कर रही थीं जो महान नाटककार हेनरिक इबसेन के ‘पीर गिंट’ से रूपांतरित है और कश्मीर पर आधारित है।
कश्मीर में पले-बढ़े रैना ने कहा कि वे भारतीय थिएटरों में घाटी को कम ही देख पा रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे खेद है, मैं कश्मीर की खराब फिल्में देखता हूं, कश्मीर पर तरह-तरह के आरोप लगाने वाली घटिया फिल्में… कश्मीर का प्रतिनिधित्व बिल्कुल नहीं किया जा रहा है, क्योंकि वे उस राज्य को नहीं जानते, यह मेरा दावा है।’’
कुछ देर बाद, वह सत्र से बाहर चले गए। उस समय इला अरुण अपने नाटक ‘पीर घणी’ का एक दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं। इससे लोगों में हलचल मच गई और सब सोच रहे थे कि आखिर हुआ क्या है।
फिर किसी ने इला अरुण को रैना के सत्र से चले जाने के बारे में बताया।
इस पर इला ने जवाब दिया ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आया?’जो सईद मिर्जा की 1980 की फिल्म ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’ की याद दिला गया।
सत्र का संचालन असद लालजी ने किया।
रैना के संस्मरण ‘बिफोर आई फॉरगेट’ उनके जीवन के उतार-चढ़ाव और कश्मीर में पले-बढ़े होने के उनके अनुभव का वर्णन करती है। इला अरुण की पुस्तक ‘परदे के पीछे’ मंच पर और पर्दे के पीछे उनके असाधारण जीवन का दस्तावेज है।
भाषा नरेश नरेश संतोष
संतोष