नयी दिल्ली, 27 दिसंबर (भाषा) वाम दलों ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन पर शुक्रवार को दुख जताया और कहा कि वह एक ऐसे नेता थे जो सुधारों के साथ लोगों के हितों के बीच संतुलन बनाने की क्षमता रखते थे।
उन्होंने कहा कि सिंह ने ऐसी नीतियां अपनाईं जिनके बारे में उनका मानना था कि वे देश के हित में हैं।
वाम मोर्चे ने 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को समर्थन दिया था।
संप्रग सरकार के दौरान प्रधानमंत्री के रूप में सिंह को ऐसी नीतियां लाने का श्रेय दिया गया जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था के आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
सिंह के नेतृत्व वाली सरकार तब लगभग गिरने स्थिति में आ गई जब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के वाम मोर्चे ने 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के मुद्दे पर अपना समर्थन वापस ले लिया। उस समय लोकसभा में वाम मोर्चा के 59 सदस्य थे।
समाजवादी पार्टी के समर्थन से संप्रग सरकार बची और 2009 में हुए अगले आम चुनाव में कांग्रेस अपनी स्थिति और मजबूत करते हुए सत्ता में वापस आई।
माकपा के पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा कि मनमोहन सिंह निर्विवाद रूप से एक ईमानदार नेता थे तथा वह धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए दृढ़ता से खड़े रहे।
माकपा ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री के रूप में अपने 10 साल के कार्यकाल के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए दृढ़ता से खड़े रहे। उन्होंने ऐसी नीतियां अपनाईं जिनके बारे में उनका मानना था कि वे देश के हित में थीं। वह निर्विवाद रूप से ईमानदार नेता थे।’’
पोलित ब्यूरो ने उनकी पत्नी गुरशरण कौर और उनकी पुत्रियों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त की।
सीपीआई (एम) नेता और आठ बार सांसद रह चुके हन्नान मोल्ला ने कहा कि सिंह ने नए आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, लेकिन उन्होंने आम लोगों के हितों को भी ध्यान में रखा।
उन्होंने कहा, ‘‘जब डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने, तो हमने समर्थन दिया। उनके पहले कार्यकाल में भारतीय राजनीति में कुछ सकारात्मक विकास हुआ।’’
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी राजा ने कहा कि सिंह सर्वश्रेष्ठ नेताओं में से एक थे।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बारे में सुनकर गहरा दुख हुआ। वह ज्ञानी, विनम्र और दयालु व्यक्ति थे। मुझे संप्रग-1 सरकार के दौरान उनके साथ मिलकर काम करने का अवसर मिला था।’’
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने पूर्व प्रधानमंत्री की उस टिप्पणी को याद किया कि इतिहास उनके प्रति दयालु होगा।
उनका कहना था, ‘‘उन घोटालों के लिए उनसे सवाल-जवाब किए गए जो कभी साबित नहीं होंगे। उनकी चुप्पी को उनकी कमजोरी का संकेत माना जाएगा। लेकिन आज भारत शायद उनकी 2014 की टिप्पणी से सहमत होगा कि ‘इतिहास समकालीन मीडिया की तुलना में मेरे प्रति अधिक दयालु होगा।’’
भाषा हक हक मनीषा
मनीषा