नयी दिल्ली, नौ दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मणिपुर सरकार को निर्देश दिया कि वह राज्य में जातीय हिंसा के दौरान पूरी तरह या आंशिक रूप से जलाये गये आवासों और संपत्तियों तथा इन पर अतिक्रमण का विवरण सीलबंद लिफाफे में रख कर सौंपे।
न्यायालय ने राज्य सरकार से पूछा कि संपत्तियों पर अतिक्रमण और आगजनी करने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने राज्य से विस्थापित लोगों की शिकायतों का समाधान तथा उनकी संपत्तियों को वापस करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया।
पीठ ने मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से विशिष्ट विवरण प्रदान करने के लिए कहा, जैसे कि ‘‘जलाए गए या आंशिक रूप से जलाए गए भवन, लूटे गए भवन, अतिक्रमण या कब्जाए गए भवन।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि रिपोर्ट में इन संपत्तियों के मालिकों और वर्तमान में उन पर कब्जा करने वालों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए, साथ ही अतिक्रमणकारियों के खिलाफ की गई कानूनी कार्रवाई का ब्योरा भी दिया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘आपको यह निर्णय लेना होगा कि आप इससे कैसे निपटना चाहते हैं, आपराधिक कार्रवाई के रूप में या उनसे (संपत्तियों पर अतिक्रमण करने वालों से) कब्जे के उपयोग के लिए ‘अंतरिम लाभ’ का भुगतान करने के लिए कहना होगा।’’
अंतरिम लाभ, वह मुआवजा है जो किसी संपत्ति के वैध स्वामी को उस व्यक्ति द्वारा दिया जाता है, जिसने उस पर अवैध कब्जा कर रखा है।
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से अस्थायी और स्थायी आवास के लिए धन जारी करने के मुद्दे पर भी जवाब देने को कहा, जिसे जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की समिति ने उठाया था।
प्रधान न्यायाधीश ने राज्य सरकार से कहा कि वह अतिक्रमणकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई और अनधिकृत कब्जे के लिए मुआवजे की वसूली पर निर्णय लेने में तेजी लाए।
सॉलिसिटर जनरल ने पीठ को आश्वासन दिया कि सरकार कानून-व्यवस्था और हथियारों की बरामदगी को प्राथमिकता दे रही है। हालांकि विधि अधिकारी ने संपत्तियों के बारे में डेटा होने की बात स्वीकार की, लेकिन उन्होंने मीडिया कवरेज पर चिंताओं का हवाला देते हुए इसे खुले तौर पर प्रकट करने में अनिच्छा व्यक्त की।
मेहता ने कहा, ‘‘हमारे पास डेटा है, लेकिन हम इसे खुली अदालत में साझा नहीं करना चाहते। मीडिया अक्सर संवेदनशील मुद्दों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है और मैंने ऐसे साक्षात्कार देखे हैं, जिनसे बचना चाहिए।’’
सुनवाई की शुरुआत में एक वकील ने दावा किया कि केंद्र और राज्य सरकारों में जनता का भरोसा खत्म हो रहा है। उन्होंने अदालत से निर्णायक रूप से कार्रवाई करने का आग्रह किया।
इस पर, सीजेआई ने कहा, ‘‘हम स्थिति से अवगत हैं। आपको हमें बताने की जरूरत नहीं है।’’
पीठ ने याचिका पर सुनवाई अगले साल 20 जनवरी से शुरू होने वाले सप्ताह के लिए तय की है।
पिछले साल अगस्त में शीर्ष अदालत ने पीड़ितों के राहत और पुनर्वास तथा उन्हें मुआवजा देने की निगरानी के लिए उच्च न्यायालय की तीन पूर्व महिला न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने का आदेश दिया था। इसके अलावा, अदालत ने महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस प्रमुख दत्तात्रेय पडसलगीकर को आपराधिक मामलों की जांच की निगरानी करने को कहा था।
मणिपुर में तीन मई, 2023 को पहली बार जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों घायल हुए हैं। बहुसंख्यक मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आयोजन किया गया था, जिसके बाद जातीय हिंसा भड़क उठी।
भाषा शफीक मनीषा
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