नई दिल्ली : Mohan Bhagwat on Manipur Violence : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने मणिपुर की हिंसा पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने हिंसा और चुनाव को लेकर बड़ी बातें कही हैं। मोहन भागवत ने मणिपुर को लेकर कहा कि, देश में शांति चाहिए। जगह-जगह और समाज में कलह नहीं चलता। एक साल से मणिपुर शांति की राह देख रहा है। उससे पहले 10 साल शांत रहा। पुराना जन कल्चर समाप्त हो गया, ऐसा लगा। अचानक जो कलह वहां उपजी या उपजाई गई उसकी आग में अभी तक चल रहा है। त्राहि त्राहि कर रहा है। उसका ध्यान कौन देगा। प्राथमिकता देकर उसपर विचार करना कर्तव्य है।
मोहन भागवत ने आगे कहा कि, भले घर की महिला शराब पीकर कार चलाती है और लोगों को रौंद देती है। तो हमारी संस्कृति कहां है। संस्कृति के वाहक हम लोग उसकी परवाह करेंगे तभी सामंजस्य बना रहेगा। इसलिए जो संस्कृति हमें सिखाती है उसे आगे की पीढ़ी तक पहुंचने का प्रश्न खड़ा हो गया है। जिन्होंने उसको त्याग दिया वे खुश नहीं हैं।
एक साल से मणिपुर शांति की राह देख रहा है। इससे पहले 10 साल शांत रहा। पुराना गन कल्चर समाप्त हो गया, ऐसा लगा। और अचानक जो कलह वहां पर उपजा या उपजाया गया, उसकी आग में अभी तक जल रहा है, त्राहि-त्राहि कर रहा है। इस पर कौन ध्यान देगा? प्राथमिकता देकर उसका विचार करना यह कर्तव्य है। -… pic.twitter.com/9VHzw8h5jE
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Mohan Bhagwat on Manipur Violence : मोहन भागवत ने चुनाव को लेकर कहा कि, यह एक सहमित बनाने की प्रक्रिया है। संसद में किसी भी प्रश्न के दोनों पहलू सामने आए इसलिए ऐसी व्यवस्था की गई है। चुनाव प्रचार में जिस प्रकार एक दूसरे को लताड़ना, तकनीक का दुरुपयोग, असत्य का प्रसारित किया जाता है, वह ठीक नहीं है। विरोधी की जगह प्रतिपक्षा कहना उचित होगा। चुनाव के आवेश से मुक्त होकर देश के सामने उपस्थित समस्याओं पर विचार करना होगा।
मोहन भागवत ने अपने बयान में आगे कहा कि, प्रचार में इस बात का भी ध्यान नहीं रखा गया कि ऐसा करने पर समाज में मनमुटाव बढ़ सकता है। संघ को भी उसमें घसीटा गया। तकनीक का भी दुरुपयोग किया गया। आधुनिक तकनीक का उपयोग असत्य परोसने के लिए किया गया। ऐसे देश कैसे चलेगा। आखिरकार सबको देश ही चलाना है। लोग विरोधी पक्ष कहते हैं, मैं प्रतिपक्ष कहता हूं। उसका भी विचार होना चाहिए। चुनाव लड़ने में मर्यादा होती है जिसका पालन नहीं हुआ। देश के सामने चुनौतियां समाप्त नहीं हुई। वही सरकार फिर से आई। पिछले 10 सालों में बहुत कुछ अच्छा हुआ। दुनिया जिस आधार पर आर्थिक स्थिति का मापन करती है. उसके हिसाब से आर्थिक स्थिति सुधरी है। दुनियाभर में देश की प्रतिष्ठा बढ़ी है। कला और संस्कृति के क्षेत्र में हम आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम चुनौतियों से मुक्त हो गए हैं। अभी चुनाव के आवेश से मुक्त होकर आने वाली बातों का विचार करना है।
* चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया है। सहचित्त
संसद में किसी भी प्रश्न के दोनों पहलू सामने आये इसलिए ऐसी व्यवस्था है।
* चुनाव प्रचार में जिस प्रकार एक दूसरे को लताड़ना, तकनीकी का दुरुपयोग, असत्य प्रसारित करना ठीक नहीं। विरोधी की जगह प्रतिपक्ष कहना चाहिए।
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