नयी दिल्ली, छह नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने वाणिज्यिक वाहन चालकों को राहत देने वाले एक महत्वपूर्ण फैसले में बुधवार को कहा कि हल्के मोटर वाहन (एलएमवी) का लाइसेंस धारक व्यक्ति 7,500 किलोग्राम तक के वजन वाला परिवहन वाहन चला सकता है।
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का यह फैसला लाइसेंसिंग विनियमों पर स्पष्टता प्रदान करता है और उम्मीद है कि यह फैसला बीमा कंपनियों को दुर्घटनाओं में शामिल चालकों के लाइसेंस के प्रकार के आधार पर दावों को खारिज करने से रोकेगा।
यह फैसला बीमा कंपनियों के लिए एक झटका है जो उन दावों को खारिज कर देती थीं, जो एक विशेष वजन के परिवहन वाहनों से होने वाली दुर्घटनाओं से संबंधित होते थे और यदि चालक कानूनी शर्तों के अनुसार उन्हें चलाने के लिए अधिकृत नहीं थे।
पांच न्यायाधीशों की ओर से सर्वसम्मति से 126 पृष्ठों का फैसला न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय ने लिखा। शीर्ष अदालत ने मुकुंद देवांगन मामले में अपने 2017 के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि हल्के मोटर वाहन लाइसेंस धारक 7,500 किलोग्राम तक वजन वाले परिवहन वाहन चला सकते हैं।
हालांकि, इसमें मोटर वाहन (एमवी) अधिनियम और नियमों के तहत बारीकियों पर भी ध्यान दिया गया।
पीठ ने कहा, ‘‘कुल 7,500 किलोग्राम से कम वाहन भार वाले वाहनों के लिए धारा 10(2)(डी) के तहत एलएमवी श्रेणी का लाइसेंस रखने वाले चालक को विशेष रूप से ‘परिवहन वाहन’ श्रेणी के लिए एमवी अधिनियम की धारा 10(2)(ई) के तहत अतिरिक्त अनुज्ञा की आवश्यकता के बिना ‘परिवहन वाहन’ चलाने की अनुमति है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘लाइसेंसिंग उद्देश्यों के लिए, एलएमवी और परिवहन वाहन पूरी तरह से अलग वर्ग नहीं हैं। दोनों के बीच एक अधिव्यापन मौजूद है। हालांकि, विशेष पात्रता आवश्यकताएं ई-कार्ट, ई-रिक्शा और खतरनाक सामान ले जाने वाले वाहनों के लिए लागू रहेंगी।’’
प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति रॉय के अलावा पीठ में न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा, न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे।
बीमा कंपनियों द्वारा सड़क सुरक्षा के बारे में उठाई गई चिंताओं को स्वीकार करते हुए, फैसले में कहा गया कि एलएमवी-लाइसेंस प्राप्त चालकों को सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि से जोड़ने वाले कोई अनुभवजन्य साक्ष्य नहीं हैं और इसके अलावा, यह मुद्दा वाणिज्यिक चालकों की आजीविका से संबंधित है।
पीठ ने कहा, ‘‘सड़क सुरक्षा वैश्विक स्तर पर एक गंभीर जन स्वास्थ्य मुद्दा है। यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि भारत में, 2023 में सड़क दुर्घटनाओं में 1.7 लाख से अधिक लोग मारे गए थे।’’
पीठ ने कहा कि इस तरह की दुर्घटनाओं के कारण विविध हैं और यह धारणा निराधार हैं कि ये एलएमवी लाइसेंस के साथ हल्के परिवहन वाहन चलाने वाले चालकों के चलते होते हैं।
उसने कहा, ‘‘सड़क दुर्घटनाओं में योगदान देने वाले कारकों में लापरवाही से वाहन चलाना, तेज गति से वाहन चलाना, सड़कों का खराब डिजाइन और यातायात नियमों का पालन न करना शामिल है। अन्य महत्वपूर्ण कारकों में मोबाइल फोन का उपयोग, थकान और सीट बेल्ट या हेलमेट नियमों का पालन न करना शामिल है।’’
पीठ ने कहा कि मोटर वाहन चलाना एक जटिल कार्य है जिसके लिए व्यावहारिक कौशल और सैद्धांतिक ज्ञान दोनों की आवश्यकता होती है और सुरक्षित ड्राइविंग में न केवल तकनीकी वाहन नियंत्रण शामिल है, बल्कि गति को नियंत्रित करने सहित विभिन्न सड़क स्थितियों में दक्षता भी शामिल है।
फैसले में कहा गया, ‘‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे क्योंकि इस मामले में किसी भी पक्ष ने यह प्रदर्शित करने के लिए कोई अनुभवजन्य डेटा प्रस्तुत नहीं किया है कि ‘परिवहन वाहन’ चलाने वाला एलएमवी ड्राइविंग लाइसेंस धारक, भारत में सड़क दुर्घटनाओं का एक महत्वपूर्ण कारक है।’’
पीठ ने स्पष्ट किया एमवी अधिनियम और नियमों में निर्दिष्ट अतिरिक्त पात्रता मानदंड केवल ऐसे वाहनों पर लागू होंगे ‘(‘मध्यम माल वाहन’, ‘मध्यम यात्री वाहन’, ‘भारी माल वाहन’ और ‘भारी यात्री वाहन’) जिनका कुल वजन 7,500 किलोग्राम से अधिक है।’’
उसने कहा, ‘‘यह परिवहन वाहन (जो काफी समय वाहन चलाने में बिताते हैं) अपने एलएमवी ड्राइविंग लाइसेंस के साथ कानूनी रूप से ‘परिवहन वाहनों’ (7,500 किलोग्राम से कम) चलाने वाले चालकों के लिए आजीविका के मुद्दों का भी प्रभावी ढंग से समाधान करेगा।’’
पीठ ने कहा कि लाइसेंसिंग व्यवस्था कैसे संचालित होगी, इस पर उसकी व्याख्या से सड़क सुरक्षा चिंताओं से समझौता होने की संभावना नहीं है।
उसने कहा, ‘‘यह व्याख्या एमवी अधिनियम के व्यापक दोहरे उद्देश्यों को भी नाकाम नहीं करती है, अर्थात सड़क सुरक्षा और सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों के लिए समय पर मुआवजा और राहत सुनिश्चित करना… इस न्यायालय का फैसला बीमा कंपनियों को 7,500 किलोग्राम से कम वजन वाले बीमित वाहन से संबंधित मुआवजे के लिए एक वैध दावे को खारिज करने के लिए तकनीकी दलील देने से रोकेगी, जिसे ‘हल्के मोटर वाहन’ श्रेणी का ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाले व्यक्ति द्वारा चलाया जा रहा हो।’’
पीठ ने अटॉर्नी जनरल के बयान का उल्लेख किया कि केंद्र इस कानूनी प्रश्न पर एमवी अधिनियम में उचित संशोधन करने पर विचार कर रहा है कि क्या एलएमवी के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति कानूनी रूप से एक निर्दिष्ट वजन का ‘परिवहन वाहन’ चलाने का हकदार है।
उसने कहा, ‘‘अगर संसद ने मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन करने के लिए पहले ही कदम उठाया होता और वर्गों, श्रेणियों और प्रकारों के बीच स्पष्ट रूप से अंतर किया होता, तो ड्राइविंग लाइसेंस से जुड़ी अनिश्चितता का समाधान किया जा सकता था, जिससे लगातार मुकदमेबाजी और अस्पष्ट कानूनी परिदृश्य की आवश्यकता कम हो जाती। अशोक गंगाधर मराठा मामले में 1999 के फैसले से शुरू होकर न्यायिक निर्णयों में भ्रम और असंगति 25 वर्षों तक बनी रही।’’
पीठ ने 21 अगस्त को इस जटिल कानूनी मुद्दे पर अपना फैसला अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी द्वारा यह कहे जाने के बाद सुरक्षित रख लिया था कि मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन के लिए परामर्श ‘‘लगभग पूरा हो चुका है’’
यह सवाल मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मामले में शीर्ष अदालत के 2017 के फैसले से उठा।
पिछले साल 18 जुलाई को संविधान पीठ ने कानूनी सवाल से निपटने के लिए 76 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। मुख्य याचिका मेसर्स बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर की गई थी।
भाषा अमित माधव
माधव