बुद्ध से सीखिए, युद्ध को दूर कीजिए और शांति का मार्ग प्रशस्त कीजिए: मोदी का विश्व से आह्वान

बुद्ध से सीखिए, युद्ध को दूर कीजिए और शांति का मार्ग प्रशस्त कीजिए: मोदी का विश्व से आह्वान

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  • Publish Date - October 17, 2024 / 01:37 PM IST,
    Updated On - October 17, 2024 / 01:37 PM IST

(तस्वीर सहित)

नयी दिल्ली, 17 अक्टूबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया के कई क्षेत्रों में जारी युद्ध के बीच बृहस्पतिवार को भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को अपरिहार्य बताया और दुनिया से युद्ध छोड़कर शांति का मार्ग प्रशस्त करने के लिए उनसे सीख लेने का आह्वान किया।

उन्होंने भारत की बुद्ध में आस्था को पूरी मानवता की सेवा का मार्ग भी करार दिया और कहा कि दुश्मनी से दुश्मनी कभी खत्म नहीं होती बल्कि यह मानवीय उदारता से खत्म होती है।

प्रधानमंत्री राजधानी स्थित विज्ञान भवन में अंतरराष्‍ट्रीय अभिधम्म दिवस कार्यक्रम और पाली को शास्त्रीय भाषा के तौर पर मान्यता देने के उपलक्ष्‍य में आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे।

इस अवसर पर उन्होंने पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने को भगवान बुद्ध की महान विरासत का सम्मान बताया और आजादी के बाद भारत की सांस्कृतिक विरासत की उपेक्षा के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों पर निशाना भी साधा।

मोदी ने रूस-यूक्रेन, इजराइल-फलस्तीन और कुछ अन्य देशों के बीच जारी युद्ध की ओर इशारा करते हुए कहा कि 21वीं सदी में विश्व की भू-राजनीतिक परिस्थितियों के चलते दुनिया कई अस्थिरताओं और आशंकाओं से घिरी हुई है।

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे में बुद्ध न केवल प्रासंगिक हैं, बल्कि अपरिहार्य भी बन चुके हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने एक बार संयुक्त राष्ट्र में कहा था- भारत ने विश्व को युद्ध नहीं, बुद्ध दिये हैं। और आज मैं बड़े विश्वास से कहता हूं- पूरे विश्व को युद्ध में नहीं, बुद्ध में ही समाधान मिलेंगे। मैं आज अभिधम्म पर्व पर पूरे विश्व का आह्वान करता हूं- बुद्ध से सीखिए…युद्ध को दूर करिए…शांति का पथ प्रशस्त करिए।’’

बुद्ध की कुछ शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि शांति से बड़ा कोई सुख नहीं है और दुश्मनी को दुश्मनी से खत्म नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘दुश्मनी, मानवीय उदारता से खत्म होती है। सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो… यही बुद्ध का संदेश है, यही मानवता का पथ है।’’

मोदी ने कहा कि भाषा, साहित्य, कला और आध्यात्मिकता जैसे सांस्कृतिक स्तंभ एक राष्ट्र की पहचान को आकार देते हैं और प्रत्येक राष्ट्र गर्व से अपनी विरासत को अपनी पहचान से जोड़ता है।

उन्होंने कहा, ‘‘अफसोस की बात है कि भारत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने में पिछड़ गया है। आजादी से पहले आक्रमणकारियों ने भारत की पहचान को मिटाने की कोशिश की और आजादी के बाद लोग गुलाम मानसिकता के आगे झुक गए।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में एक ‘पारिस्थितिकी तंत्र’ ने पकड़ बना ली थी जिसने देश को गलत दिशा में धकेलने का काम किया।

उन्होंने कहा, ‘‘आजादी के समय बुद्ध के जिन प्रतीकों को भारत के प्रतीक चिह्नों के तौर पर अंगीकार किया गया….बाद के दशकों में उन्हीं बुद्ध को भूलते चले गए। पाली भाषा को सही स्थान मिलने में सात दशक ऐसे ही नहीं लगे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन आज देश हीन भावना से मुक्त होकर, स्वाभिमान से, आत्म-गौरव के साथ आगे बढ़ रहा है। इस परिवर्तन के कारण देश साहसिक निर्णय ले रहा है। यही कारण है कि आज पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त है और इसी तरह मराठी भाषा को भी यह सम्मान प्राप्त है। भारत बड़ी प्रगति कर रहा है, भारत आगे और आगे बढ़ रहा है।’’

मोदी ने इस अवसर पर बाबासाहेब आंबेडकर को भी श्रद्धांजलि दी जो दलित समुदाय से ताल्लुक रखते थे लेकिन बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था।

बुद्ध की शिक्षाओं को मूल रूप से पाली में संरक्षित किए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह हर किसी की जिम्मेदारी है कि वह भाषा का संरक्षण करे जो अब आम तौर पर इस्तेमाल नहीं होती।

उन्होंने कहा, ‘‘पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा भगवान बुद्ध की महान विरासत का सम्मान है।’’

मोदी ने कहा कि दुर्भाग्य से, पाली जैसी प्राचीन भाषा आज सामान्य प्रयोग में नहीं है जबकि भाषा केवल संवाद का माध्यम भर नहीं होती बल्कि सभ्यता और संस्कृति की आत्मा होती है।

उन्होंने कहा, ‘‘हर भाषा से उसके मूल भाव जुड़े होते हैं। इसलिए, भगवान बुद्ध की वाणी को उसके मूल भाव के साथ जीवंत रखने के लिए पाली को जीवंत रखना, ये हम सबकी ज़िम्मेदारी है। मुझे खुशी है कि हमारी सरकार ने बड़ी नम्रतापूर्वक ये ज़िम्मेदारी निभाई है।’’

अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ ने इस समारोह का आयोजन संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से किया था। केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और संसदीय और अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रीजीजू भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

पाली को हाल ही में चार अन्य भाषाओं के साथ शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी गई है। इसके साथ ही इस वर्ष के अभिधम्म दिवस समारोह का महत्व भी बढ़ गया है क्योंकि अभिधम्म पर भगवान बुद्ध की शिक्षाएं मूल रूप से पाली भाषा में उपलब्ध हैं।

प्रधानमंत्री ने शरद पूर्णिमा और वाल्मीकि जयंती के अवसर पर लोगों को शुभकामनाएं भी दीं।

भाषा ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र नरेश

नरेश