नयी दिल्ली, 17 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय में एक असामान्य घटनाक्रम में, एक विधि अधिकारी ने जमानत मामले में ‘आधा-अधूरा’ जवाब दाखिल करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की आलोचना की और बाद में इसे गलतफहमी करार देते हुए अदालत से सुनवाई जारी रखने का आग्रह किया।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ भारतीय दूरसंचार सेवा के अधिकारी अरुण पति त्रिपाठी की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के 25 अक्टूबर, 2024 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें चर्चित छत्तीसगढ़ शराब घोटाले के संबंध में जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता एस वी राजू ने कहा, ‘‘जहां तक मेरे विभाग का सवाल है, तो इसमें कुछ गड़बड़ है। परामर्श के बिना, हमारे पेश होने से पहले ही एक आधा-अधूरा हलफनामा दाखिल कर दिया गया।’’
चौंकाने वाली दलील पर ध्यान देते हुए, पीठ ने स्थिति पर असंतोष व्यक्त किया और इसे ‘गंभीर मामला’ बताते हुए ईडी और एजेंसी के एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (एओआर) की जवाबदेही पर सवाल उठाया।
न्यायमूर्ति ओका ने कहा, ‘‘जवाबी हलफनामा आपके एओआर द्वारा दाखिल किया गया होगा।’’
जिस पर राजू ने कहा कि एओआर को इस चूक के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसके बाद जब मामले की सुनवाई हुई, तो पीठ ने राजू से पूछा, ‘‘आपने (ईडी ने) जवाबी हलफनामा दाखिल किया है। क्या आप अब इसे अस्वीकार कर सकते हैं? क्या चल रहा है?’’
उन्होंने जवाब दिया, ‘‘मैं अस्वीकार नहीं कर रहा हूं। मैं केवल यह कह रहा हूं कि इसे उचित जांच के बिना दाखिल किया गया था, इसलिए मुझे इसकी पुष्टि करनी होगी।’’
पीठ ने इसे ‘दुखद बात’ करार दिया और कहा कि यह एओआर पर लांछन लगाने जैसा है।
विधि अधिकारी ने कहा, ‘‘मैं कोई संदेह नहीं कर रहा हूं। कुछ गलतफहमी हुई हैं।’’
उन्होंने जोर देकर कहा कि एओआर को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।
राजू ने फिर पीठ से मामले को आगे बढ़ाने का अनुरोध किया, लेकिन अदालत ने सुनवाई 5 फरवरी के लिए टाल दी। एक दिन पहले, विधि अधिकारी ने कहा कि हलफनामा जांच एजेंसी से जानकारी लिए बिना दाखिल किया गया था, और उन्होंने ईडी के भीतर संभावित प्रक्रियात्मक खामियों का संकेत दिया।
इस पर त्रिपाठी का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने सुझाव दिया कि यह आरोपी की हिरासत को बढ़ाने की जानबूझकर की गई रणनीति हो सकती है।
पीठ ने आश्चर्य जताया कि उचित निर्देशों के बिना हलफनामा कैसे दायर किया जा सकता है और पूछा, ‘‘ईडी के लिए एओआर हलफनामा दायर करता है, और अब ईडी कहना चाहता है कि यह बिना निर्देशों के दायर किया गया था। हम इसे कैसे स्वीकार कर सकते हैं?’’
एएसजी ने स्पष्ट किया कि हलफनामा ईडी से आया था, लेकिन इसे उचित चैनलों के माध्यम से जांचे बिना प्रस्तुत किया गया था।
एएसजी ने अदालत को आश्वासन दिया कि उन्होंने ईडी निदेशक से मामले की विभागीय जांच शुरू करने के लिए कहा है।
भाषा वैभव दिलीप
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