सरकारी नौकरी छोड़ अपनी अलग पहचान बनाने की थी ललक, जानें अर्पिता मुखर्जी ने कैसे बनाई अपनी राह

Arpita Mukherjee: अर्पिता ने 2004 के आसपास मॉडलिंग में अपना करियर शुरू किया और एक नेल आर्टिस्ट के रूप में अपना नाम भी बनाया।

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  • Publish Date - July 24, 2022 / 06:01 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:47 PM IST

कोलकाता। Arpita Mukherjee: ईडी द्वारा पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग की भर्ती में अनियमितता घोटाला पर एजेंसी की चल रही जांच के सिलसिले में अर्पिता मुखर्जी के आवास से भारी मात्रा में नकदी, सोना और अन्य कीमती सामान बरामद किए जाने के बाद से वो सुर्खियों में है। केंद्रीय एजेंसी के अधिकारियों द्वारा अर्पिता की पृष्ठभूमि की जांच से पता चला कि पश्चिम बंगाल के वाणिज्य और उद्योग मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी की विश्वासपात्र हैं और करीबी सहयोगी के रूप में काम कर रही हैं। अपनी वर्तमान स्थिति तक पहुंचने के लिए एक ओडिया अभिनेत्री के तौर पर शुरुआत करने वाली अर्पिता हमेशा शॉर्टकट तरीके अपनाती हैं।

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पिता की मौत के बाद मां से अलग रहने लगी अर्पिता

Arpita Mukherjee: ईडी ने इस सिलसिले में पार्थ को भी गिरफ्तार किया है। ईडी के सूत्रों ने कहा कि, ज्यादा महत्वाकांक्षा के चलते अर्पिता ने अपनी विधवा मां मिनोती मुखर्जी को कोलकाता के उत्तरी बाहरी इलाके में बेलघरिया में अपने पैतृक फ्लैट में ही छोड़ दिया। मिनोती मुखर्जी ने बताया कि अर्पिता के पिता सरकारी नौकरी में थे। उनकी मौत के बाद अर्पिता की नौकरी लग रही थी लेकिन उसने नहीं की। मीडिया को बताते हुए कहा कि जब से उनकी बेटी दक्षिण कोलकाता के पॉश डायमंड सिटी आवासीय परिसर में अपने फ्लैट में रहने लगी है, जहां से नकदी और सोना जब्त किया गया था। तब से उनकी बेटी के साथ उनके संबंध बहुत खराब हो गए।

दो दशकों में पूरा किया लाइमलाइट में आने का सफर

Arpita Mukherjee: सूत्रों ने बताया कि मुखर्जी ने 2004 के आसपास मॉडलिंग में अपना करियर शुरू किया और एक नेल आर्टिस्ट के रूप में अपना नाम भी बनाया। इन वर्षों में, उन्होंने पटुली, लेक व्यू रोड और बैरकपुर में तीन नेल आर्ट शोरूम खोले। अपने मॉडलिंग करियर पर काम करते हुए, उन्हें बंगाली फिल्मों में छोटी भूमिकाएं मिलने लगीं, कुछ लोकप्रिय अभिनेताओं प्रोसेनजीत चटर्जी और जीत के साथ भी छोटे रोल किए। अर्पिता मुखर्जी ने यह सफर महज दो दशकों में पूरा किया। इन बीस वर्षों में अर्पिता को देखने वाले भी उसकी दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की देखकर हैरान थे। अब एसएससी स्कैम में ईडी की गिरफ्त में आई अर्पिता की ‘तरक्की’ का रास्ता सामने आया है। नकटला उदयन संघ की पोस्टर गर्ल कभी अभिनेत्री रितुपर्णा सेनगुप्ता होती थीं। जिसे अर्पिता ने रिप्लेस किया तो यह चर्चा का विषय बन गया। हालांकि अर्पिता के ऊपर मंत्री पार्थ चटर्जी का हाथ होने की गुपचुप चर्चा होती थी।

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रूढ़िवादी परिवार से आती थी अर्पिता

Arpita Mukherjee: बीजेपी की कोलकाता जिला अध्यक्ष संघमित्रा चौधरी ने मुखर्जी को अपनी फीचर फिल्म में मुख्य भूमिका के रूप में लिया था, जिसका शीर्षक 2011 में ‘द भूत ऑफ रोजविले’ था, और उसी वर्ष ‘बिदेहर खोंजे रवींद्रनाथ’ नामक एक अन्य फिल्म थी। अर्पिता का परिचय सिद्धार्थ सिन्हा ने किया था, जो उनकी पहली फिल्म ‘स्पर्श’ के निर्माता थे। इसके बाद, वह एक अच्छी फैशन सेंस वाली मासूम लड़की के रूप में सामने आई। वह एक रूढ़िवादी परिवार से आती थी। उसके पास कार भी नहीं थी और शूटिंग के लिए आने के लिए वह सार्वजनिक परिवहन से यात्रा करती थी।’ संघमित्रा ने बताया कि 2013 में उनके बीजेपी में शामिल होने से पहले अर्पिता मेरे संपर्क में रहती थीं और अपने फिल्मी करियर के बारे में मेरे सुझाव लेती थीं। लेकिन एक बार जब मैं बीजेपी में शामिल हो गई, तो हमारी बातचीत बंद हो गई। एक बार मैं उससे एक पार्टी में मिली, जहां उसने बताया कि वह उड़िया और दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम कर रही है।

निर्देशक-निर्माता भी हैरान हो उठे

Arpita Mukherjee: निर्देशक और निर्माता अनूप सेनगुप्ता अर्पिता मुखर्जी की तीन फिल्मों में निर्देशक रहे हैं। इस खुलासे के बाद वह हैरत में हैं। उन्होंने बताया, ‘मैं प्रोसेनजीत चटर्जी, रंजीत मल्लिक और अनन्या चटर्जी अभिनीत ‘मामा भगने’ (2010) के लिए नायिका की दोस्त के लिए एक लड़की की तलाश कर रहा था। तभी किसी ने मुझे अर्पिता से मिलवाया। 2011 में, उन्होंने फिर से मेरे ‘बांग्ला बचाओ’ में अभिनय किया, जिसमें प्रोसेनजीत चटर्जी, पाओली, साहेब भट्टाचार्जी ने अभिनय किया। मैंने उन्हें सेकेंड हीरोइन के तौर पर कास्ट किया था। मैं यह देखकर दंग रह जाता हूं कि उसने इतनी दौलत कैसे जमा कर ली। जब मैंने उसके साथ काम किया, तो वह एक साधारण पृष्ठभूमि से आई थी और सेकंड हैंड कार से चलती थी।’

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