खुदीराम बोस पुण्यतिथि :ऐसा क्रांतिकारी जो देश की आजादी के लिए 19 साल की उम्र में हंसते-हंसते फांसी पर झूल गया

खुदीराम बोस पुण्यतिथि :ऐसा क्रांतिकारी जो देश की आजादी के लिए 19 साल की उम्र में हंसते-हंसते फांसी पर झूल गया

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  • Publish Date - August 11, 2019 / 07:58 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:55 PM IST

रायपुर। भारतीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास क्रांतिकारियों के सैकड़ों साहसिक कारनामों से भरा पड़ा है। क्रांतिकारियों की सूची में ऐसा ही एक नाम है खुदीराम बोस का, जो मात्र 19 साल की उम्र में ही देश के लिए फांसी पर चढ़ गए। कुछ इतिहासकार उन्हें देश के लिए फांसी पर चढ़ने वाला सबसे कम उम्र का क्रांतिकारी देशभक्त मानते हैं। खुदीराम का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में त्रैलोक्यनाथ बोस के यहां हुआ था। देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि उन्होंने 9वीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आंदोलन में कूद पड़े।

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इसके बाद वे रिवॉल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वंदेमातरम् पंफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में चलाए गए आंदोलन में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इतिहासवेत्ता मालती मलिक के अनुसार 28 फरवरी 1906 को खुदीराम बोस गिरफ्तार कर लिए गए लेकिन वे कैद से भाग निकले। लगभग 2 महीने बाद अप्रैल में वे फिर से पकड़े गए। 16 मई 1906 को उन्हें रिहा कर दिया गया।

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6 दिसंबर 1907 को खुदीराम ने नारायगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया, परंतु गवर्नर बच गया। सन 1908 में उन्होंने दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया लेकिन वे भी बच निकले। खुदीराम बोस मुजफ्फरपुर के सेशन जज से बेहद खफा थे, क्योंकि उसने बंगाल के कई देशभक्तों को कड़ी सजा दी थी। उन्होंने अपने साथी प्रफुल्लचंद चाकी के साथ मिलकर सेशन जज किंग्सफोर्ड से बदला लेने की योजना बनाई।

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दोनों मुजफ्फरपुर आए और 30 अप्रैल 1908 को सेशन जज की गाड़ी पर बम फेंक दिया, लेकिन उस समय गाड़ी में किंग्सफोर्ड की जगह उसकी परिचित दो यूरोपीय महिला कैनेडी और उसकी बेटी सवार थी। किंग्सफोर्ड के धोखे में दोनों महिलाएं मारी गई जिसका खुदीराम और प्रफुल्ल चंद चाकी को बेहद अफसोस हुआ। अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लगी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया। अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्लचंद चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी जबकि खुदीराम पकड़े गए। 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई। उस समय उनकी उम्र मात्र 19 साल थी।

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फांसी के बाद खुदीराम बोस इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। इतिहासवेत्ता शिरोल के अनुसार बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिए वह वीर शहीद और अनुकरणीय हो गया। विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों ने शोक मनाया। कई दिन तक स्कूल बंद रहे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे जिनकी किनारी पर ‘खुदीराम’ लिखा होता था।