कर्नाटक उच्च न्यायालय ने स्वतंत्र एजेंसी से एमयूडीए मामले की जांच पर फैसला सुरक्षित रखा
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने स्वतंत्र एजेंसी से एमयूडीए मामले की जांच पर फैसला सुरक्षित रखा
बेंगलुरु, 27 जनवरी (भाषा) एमयूडीए मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) जैसी किसी स्वतंत्र एजेंसी को सौंपा जाए या नहीं, इस विषय पर कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपना आदेश सुरक्षित रखा है।
मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) भूखंड आवंटन मामले में याचिकाकर्ताओं ने अदालत से मामले को सीबीआई या किसी अन्य स्वतंत्र एजेंसी को सौंपने का अनुरोध किया था। इस मामले में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया, उनकी पत्नी पार्वती बी एम, उनके बहनोई मल्लिकार्जुन स्वामी और अन्य आरोपी हैं।
लोकायुक्त पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर उनसे पूछताछ शुरू कर दी है।
याचिका दाखिल करने वाला कार्यकर्ता हालांकि इससे संतुष्ट नहीं है और उसका कहना है कि राज्य के लोकपाल की पुलिस शाखा अपने वरिष्ठ अधिकारी, जो कि मुख्यमंत्री हैं, के खिलाफ निष्पक्ष तरीके से जांच नहीं कर सकती।
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने कहा, “यह याचिका सीआरपीसी की धारा 226 और 482 के तहत इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का आह्वान करते हुए प्रस्तुत की गई थी, जिसमें मामले को सीबीआई जैसी स्वतंत्र एजेंसी को सौंपने या अन्यथा वैकल्पिक रूप से प्रार्थना करने का अनुरोध किया गया था।” न्यायाधीश ने याचिकाओं पर सुनवाई करते समय समय-समय पर अपने न्यायालय द्वारा पारित आदेशों का भी हवाला दिया।
उन्होंने कहा, “उक्त आदेश के अनुसरण में, संबंधित अदालत यानी सत्र अदालत के निर्देशों को 28 जनवरी, 2025 तक के लिए स्थगित कर दिया गया था। इसलिए, संबंधित अदालत द्वारा लोकायुक्त को या उससे पहले जो रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया था, उसे 28 जनवरी से पहले दाखिल किया जाना था।”
पीठ ने कहा, “इस मामले की विस्तृत सुनवाई के मद्देनजर, मैं इसे निर्णय सुनाए जाने तक बढ़ाना उचित समझता हूं। निर्णय सुरक्षित रखा गया है।”
एमयूडीए भूखंड आवंटन मामले में, यह आरोप लगाया गया है कि सिद्धरमैया की पत्नी को मैसूर के एक पॉश इलाके में प्रतिपूरक भूखंड आवंटित किया गया था, जिसका संपत्ति मूल्य एमयूडीए द्वारा “अधिग्रहित” उनकी भूमि के स्थान की तुलना में अधिक था।
भाषा प्रशांत मनीषा
मनीषा

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