बेंगलुरु: High Court dismisses Siddaramaiah’s plea कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मंगलवार को मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को बड़ा झटका देते हुए उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने भू आवंटन मामले में उनके विरूद्ध जांच के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत द्वारा दी गयी मंजूरी को चुनौती दी थी।
मुख्यमंत्री ने मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) की ओर से पॉश क्षेत्र में उनकी पत्नी को 14 भूखंडों के आवंटन में कथित अनियमितताओं के सिलसिले में उनके खिलाफ जांच के लिए राज्यपाल द्वारा दी गयी मंजूरी को चुनौती दी थी।
उच्च न्यायालय के फैसले के तत्काल बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सिद्धरमैया के इस्तीफे की मांग की जिस पर मुख्यमंत्री ने पलटवार करते हुए नरेन्द्र मोदी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार पर कर्नाटक सहित विपक्ष शासित राज्य सरकारों के खिलाफ ‘‘प्रतिशोध’’ की राजनीति करने का आरोप लगाया। मुख्यमंत्री ने विपक्ष के उनके इस्तीफे की मांग को भी खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा कि सामान्य परिस्थितियों में, राज्यपाल को भारत के संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होता है, ‘‘ लेकिन (राज्यपाल) असाधारण परिस्थितियों में स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं और वर्तमान मामला एक ऐसे ही अपवाद को दर्शाता है।’’ इसके साथ ही न्यायमूर्ति ने सिद्धरमैया की याचिका खारिज कर दी।
न्यायाधीश ने अपने आदेश में इस बात पर जोर दिया कि राज्यपाल के आदेश में कहीं भी ‘‘समुचित विचार की कमी नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि ‘‘यह राज्यपाल द्वारा समुचित विचार नहीं किए जाने का मामला नहीं है, बल्कि यह विवेक के भरपूर इस्तेमाल का मामला है।’’
इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने राज्यपाल की कार्रवाई को सही ठहराया है। भाजपा मांग करती है कि मुख्यमंत्री सिद्धरमैया इस्तीफा दें और शर्मनाक भ्रष्टाचार के आरोपों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच का रास्ता साफ करें।’’
राज्य भाजपा नेताओं की ओर से भी ऐसी ही मांगें की गईं। भाजपा की कर्नाटक इकाई ने मुख्यमंत्री के खिलाफ प्रदर्शन भी किया।
वहीं सिद्धरमैया ने आरोप लगाया कि विपक्ष उनके और उनकी सरकार के खिलाफ साजिश रच रहा है जिसका वह राजनीतिक रूप से मुकाबला करेंगे। उन्होंने कहा कि वह कानूनी विशेषज्ञों और पार्टी नेताओं से परामर्श के बाद अपने अगले कदम और कानूनी लड़ाई पर फैसला करेंगे।
मुख्यमंत्री ने यहां आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘मुझे क्यों इस्तीफा देना चाहिए? क्या (एच.डी.) कुमारस्वामी(केंद्रीय मंत्री) ने इस्तीफा दिया है? वह जमानत पर हैं, उनसे पूछिये…इसमें यही कहा है कि जांच करने की जरूरत है। जांच के स्तर पर ही इस्तीफा मांगा जाना चाहिए? मैं उन्हें जवाब दूंगा…मैं इसका राजनीतिक रूप से मुकाबला करूंगा क्योंकि यह साजिश है।’’
सिद्धरमैया ने यहां संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि वह कानूनी विशेषज्ञों, मंत्रियों, पार्टी के प्रदेश अध्यक्षों और अन्य लोगों के साथ चर्चा के बाद अगली कार्रवाई पर फैसला करेंगे।
कांग्रेस नेता ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल सेक्युलर (जद एस) पर ‘साजिश, राजभवन के दुरुपयोग’ का आरोप लगाते हुए कहा कि वह उनसे नहीं डरेंगे क्योंकि राज्य के लोग उनके साथ हैं और उन्हें और उनकी पार्टी को उनका आशीर्वाद प्राप्त है।
उन्होंने कहा, ‘‘ उप मुख्यमंत्री समेत सभी मंत्री, विधायक, पार्टी नेता, कार्यकर्ता और आलाकमान मेरे साथ हैं। कानूनी लड़ाई जारी रखने में आलाकमान मेरा साथ देंगे।’’
वहीं कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार ने कहा कि मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के इस्तीफा देने का प्रश्न ही नहीं उठता है। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री के खिलाफ एक ‘बड़ी साजिश’ रची गई है। शिवकुमार ने कहा कि सिद्धरमैया ने इस मामले में कुछ भी गलत नहीं किया है और वह बेदाग साबित होंगे।
उन्नीस अगस्त से छह बैठकों में इस याचिका पर सुनवाई पूरी करने के बाद न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने 12 सितंबर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।
उच्च न्यायालय ने 19 अगस्त के अपने अंतरिम आदेश का भी विस्तार किया था। इस अंतरिम आदेश में विशेष अदालत (जनप्रतिनिधि) को इस (सिद्धरमैया की) याचिका के निस्तारण तक अपनी कार्यवाही (सुनवाई) टाल देने का निर्देश दिया गया था। विशेष अदालत (जनप्रतिनिधि) उनके (सिद्धरमैया के) खिलाफ शिकायत की सुनवाई करने वाली थी।
मैसूरु शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) मामले की जड़ें तीन दशक से भी अधिक पुरानी हैं, जिसमें कर्नाटक के राज्यपाल गहलोत ने मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ जांच की मंजूरी दी है।
यह मामला सिद्धरमैया की पत्नी बी एम पार्वती को कथित तौर पर मुआवजे के तौर पर मैसूरु के एक पॉश इलाके में जमीन आवंटित किए जाने से जुड़ा है, जिसका संपत्ति मूल्य उनकी उस जमीन की तुलना में अधिक था जिसे एमयूडीए ने ‘‘अधिग्रहीत’’ किया था।
राज्यपाल ने शिकायतकर्ताओं–प्रदीप कुमार एस पी, टी जे अब्राहम और स्नेहमयी कृष्णा द्वारा सौंपी गयी याचिकाओं में उल्लिखित कथित अपराधों के सिलसिले में 16 अगस्त को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत (जांच की) मंजूरी प्रदान की थी।
सिद्धरमैया ने राज्यपाल के आदेश की वैधता को 19 अगस्त को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
अपनी याचिका में मुख्यमंत्री ने कहा था कि बिना समुचित विचार किए, वैधानिक आदेशों तथा मंत्रिपरिषद की सलाह सहित संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए मंजूरी आदेश जारी किया गया। उन्होंने याचिका में कहा था कि मंत्रिपरिषद की सलाह भारत के संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत बाध्यकारी है।
सिद्धरमैया ने यह दलील देते हुए उच्च न्यायालय से राज्यपाल के आदेश को खारिज करने का अनुरोध किया कि उनका निर्णय वैधानिक रूप से असंतुलित, प्रक्रियागत खामियों से भरा तथा असंबद्ध विचारों से प्रेरित है।
मशहूर वकीलों अभिषेक मनु सिंघवी एवं प्रोफेसर रविवर्मा कुमार ने सिद्धरमैया का पक्ष रखा जबकि सॉलीसीटर जनरल (भारत सरकार) तुषार मेहता राज्यपाल की ओर से पेश हुए। महाधिवक्ता किरण शेट्टी ने भी दलीलें दीं।
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