करगिल युद्ध : आठवीं माउंटेन डिवीजन ने नियंत्रण रेखा को सुरक्षित रखने में अहम योगदान दिया

करगिल युद्ध : आठवीं माउंटेन डिवीजन ने नियंत्रण रेखा को सुरक्षित रखने में अहम योगदान दिया

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  • Publish Date - July 27, 2024 / 01:17 AM IST,
    Updated On - July 27, 2024 / 01:17 AM IST

(कुणाल दत्त)

नयी दिल्ली, 26 जुलाई (भाषा) सेवानिवृत्ति के बाद लेफ्टिनेंट जनरल मोहिंदर पुरी खुद को फिट और व्यस्त रखने के लिए खूब गोल्फ खेलते हैं। लेकिन 25 साल पहले करगिल युद्ध के नायक ने आठवीं माउंटेन डिवीजन का नेतृत्व किया था, जिसने पाकिस्तान से लगी नियंत्रण रेखा को सुरक्षित करने और लद्दाख के सबसे दुर्गम इलाकों की अहम चोटियों पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

राष्ट्र ने शुक्रवार को करगिल विजय दिवस की रजत जयंती मनाई और इस कार्यक्रम का समापन देशभक्ति के उत्साह के साथ द्रास में हुआ।

वर्ष 1999 के करगिल युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाने वाले लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) पुरी और कई अन्य करगिल दिग्गजों को हाल ही में दिल्ली में प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल अनिल चौहान द्वारा सम्मानित किया गया था।

प्रमुख रक्षा अध्यक्ष ने करगिल युद्ध की 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर टीवी9 नेटवर्क द्वारा आयोजित ‘करगिल दिवस सम्मान’ समारोह में कहा कि युद्ध की यादों को ताजा करने के अलावा, इसके बाद की स्थिति को देखना और भविष्य के लिए सही सबक का निष्कर्ष निकालना भी महत्वपूर्ण है।

करगिल युद्ध की यादों के बारे में पूछे जाने पर लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) पुरी ने कहा, ‘‘बहुत सारी यादें हैं। लेकिन, पहली सफलता जो हमें मिली, वह सबसे बड़ी याद है। हमने जो अधिकारी और जवान खोये, वह एक परेशान करने वाली याद है। कमोबेश हर दिन हम उन्हें याद करते हैं। क्योंकि वे आपके साथ, आपके लिए, आपके अधीन लड़े थे।’’

लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने सेना की आठवीं माउंटेन डिवीजन की कमान संभाली थी, उन्होंने सेना की इस डिवीजन द्वारा निभाई गई प्रमुख भूमिका को याद किया।

लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘आठवीं माउंटेन डिवीजन ने नियंत्रण रेखा को सुरक्षित करने और उसे बहाल करने में शानदार भूमिका निभाई, सबसे दुर्गम इलाकों में बहुत ही महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा किया। यह हमारे युवा अधिकारियों तथा जवानों की बहादुरी, साहस एवं दृढ़ संकल्प के कारण संभव हुआ। उन्होंने देश को जो सम्मान और गरिमा प्रदान की उसके लिए मैं उनको सलाम करता हूं।’’

करगिल युद्ध के दौरान सेना की रसद इकाई का हिस्सा रहीं कैप्टन (सेवानिवृत्त) यशिका त्यागी ने भी युद्ध के दौरान के निर्णायक क्षणों को याद किया।

कैप्टन (सेवानिवृत्त) यशिका त्यागी ने कहा, ‘‘ मेरे लिए, व्यक्तिगत रूप से यह केवल उस स्थान पर होना था…. खुद को लचीला बनने के लिए कहना, उन लोगों को देखना जो सभी बाधाओं के बावजूद प्रदर्शन कर रहे हैं। हर बार, मैं एक हताहत को आते हुए देखूंगी, आपका दिल… हम कहते हैं, कभी भी किसी शहीद के लिए रोना या दुखी महसूस नहीं करना चाहिए, लेकिन मैंने वास्तव में उस युद्ध क्षेत्र में महसूस किया कि किसी को उस मानवीय भावना पर बहुत गर्व होना चाहिए। ’’

कैप्टन त्यागी, जो युद्ध के दौरान गर्भवती थीं, कहती हैं कि उनके दोनों बेटे अपनी मां पर गर्व महसूस करते हैं।

पांचवीं पैरा रेजिमेंट (विशेष बल) के एक अन्य करगिल नायक ब्रिगेडियर बी एम करिअप्पा ने कहा कि युद्ध से उन्हें यही सीख मिली है कि हर समय, हर परिस्थिति और हर तरह की आकस्मिकता के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि दुश्मन द्वारा अपनाई गई रणनीति को हराने का हमेशा कोई न कोई तरीका होता है।

ब्रिगेडियर बी एम करिअप्पा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ इसलिए, उन्होंने जगह-जगह बारूदी सुरंगें बिछा दी थीं। लेकिन हम उन बारूदी सुरंगों के बीच से गुजरे, जबकि वहां बहुत सारी बारूदी सुरंगें बिछाई गई थीं।’’

भाषा

रवि कांत रवि कांत संतोष

संतोष