झारखंड जमीन ‘‘घोटाले’’ में लेनदेन का पता लगाने के लिए न्यायालय ने आरोपी का ‘बैंक स्टेटमेंट’ मांगा

झारखंड जमीन ‘‘घोटाले’’ में लेनदेन का पता लगाने के लिए न्यायालय ने आरोपी का ‘बैंक स्टेटमेंट’ मांगा

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  • Publish Date - August 29, 2024 / 04:38 PM IST,
    Updated On - August 29, 2024 / 04:38 PM IST

नयी दिल्ली, 29 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कथित तौर पर फर्जी संपत्ति दस्तावेज तैयार करके रांची में भारतीय सेना की 4.55 एकड़ जमीन की बिक्री से संबंधित वित्तीय लेनदेन का पता लगाने के लिए बृहस्पतिवार को एक आरोपी के ‘बैंक स्टेटमेंट’ मांगे।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी कथित भूमि घोटाले से उत्पन्न धनशोधन मामले में आरोपी हैं। वह अभी जमानत पर हैं।

शीर्ष अदालत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा 28 नवंबर, 2023 को सह-आरोपी दिलीप घोष को जमानत दिए जाने को चुनौती दी गई है।

न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने दिलीप घोष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एस. नागमुथु से कहा, ‘आप आज शाम तक संबंधित अवधि का बैंक स्टेटमेंट (आरोपी का) पेश करें। इस पर कल (शुक्रवार) सुनवाई होगी।’

शीर्ष अदालत ने नागमुथु के अनुरोध के अनुसार मामले को बाद की तारीख पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया और कहा कि इस पर शुक्रवार को ही सुनवाई होगी।

संघीय धनशोधन रोधी जांच एजेंसी के अनुसार, भारतीय सेना से संबंधित 4.55 एकड़ जमीन को गैर-मालिकों ने फर्जी दस्तावेज बनाकर बेच दिया।

उसने कहा कि झारखंड की राजधानी रांची के बरियातू मुहल्ले के निवासी अफसर अली और उसके साथियों ने कोलकाता में रजिस्ट्रार ऑफ एश्योरेंस (रिकॉर्ड) के कार्यालय में प्रफुल्ल बागची के नाम से एक फर्जी दस्तावेज तैयार किया और दावा किया कि जमीन प्रफुल्ल बागची की है।

कुछ आरोपियों ने संपत्ति के संबंध में ‘होल्डिंग नंबर’ प्राप्त कर लिया और इसे मेसर्स जगतबंधु टी एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड (जेटीईपीएल) को बेचने की पेशकश की, जिसके दिलीप घोष निदेशक हैं।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि जेटीईपीएल ने संपत्ति सात करोड़ रुपये की तय राशि में खरीदी है, जबकि इसका मौजूदा मूल्य 20 करोड़ रुपये से अधिक है, क्योंकि उक्त संपत्ति के संबंध में भारतीय सेना के साथ एक मुकदमा चल रहा था।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह दावा किया गया था कि जेटीईपीएल द्वारा आरोपी प्रदीप बागची के पक्ष में चेक जारी किए गए थे। उच्च न्यायालय ने कहा था कि 25 लाख रुपये का चेक भुनाया गया था और आपसी समझ के अनुसार, शेष राशि संबंधित संपत्ति का भौतिक कब्जा सौंपने पर देय थी।

ईडी आरोपियों के बीच मिलीभगत का दावा कर रही है और कथित धनशोधन के लिए उन पर मुकदमा चलाना चाहती है।

बुधवार को पीठ ने ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू से पूछा कि क्या जांच एजेंसी के पास घोष और बागची की कॉल डिटेल्स हैं। जांच एजेंसी ने कहा कि उसके पास वे नहीं हैं, लेकिन वह इस पहलू को बाद में स्पष्ट करेगी।

विधि अधिकारी ने कहा कि बिक्री विलेख कुल 7 करोड़ रुपये की राशि का था, लेकिन इसमें बागची को 25 लाख रुपये के आंशिक भुगतान का कोई संदर्भ नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘हालांकि बिक्री विलेख में 7 करोड़ रुपये के भुगतान के लिए चेक का उल्लेख है, लेकिन कोई भी चेक भुनाया नहीं गया। अगर भुगतान का कोई समझौता होता, तो बिक्री विलेख को बनाए रखा जाता।’

पीठ ने कहा, ‘आपने 7 करोड़ रुपये का भुगतान कैसे किया…सवाल यह है कि अगर यह दिखाया गया है कि ये भुगतान चेक जारी करके किए गए थे, तो बिक्री विलेख में इस बात का उल्लेख है कि चेक भुनाए नहीं गए।’

जब नागमुथु ने स्पष्टीकरण देने का प्रयास किया, तो पीठ ने कहा, ‘यहां इस तरह की बनावटी दलीलें न दें। हम इसे स्वीकार नहीं करने जा रहे हैं।’

धनशोधन का मामला झारखंड पुलिस द्वारा 4 जून, 2022 को रांची के बरियातू थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467 और 471 के तहत स्थानीय निवासी प्रदीप बागची के खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी से उत्पन्न हुआ।

प्राथमिकी रांची नगर निगम के कर संग्रहकर्ता दिलीप शर्मा की एक शिकायत पर आधारित थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बागची ने जाली कागजात जमा करके जमीन के दो ‘होल्डिंग नंबर’ प्राप्त किए। बाद में उन्होंने कथित तौर पर धोखाधड़ी से संपत्ति को बेच दिया।

भाषा अमित अविनाश

अविनाश