Jharkhand Election 2024: भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण से कैसे निपटेगी हेमंत सोरेन सरकार, आदिवासी समुदायों पर सबसे ज्यादा असर

Jharkhand Election 2024: इसके पारंपरिक वोट बैंक को भी खत्म करने की कोशिश की है। इसका सबसे ज्यादा असर आदिवासी समुदायों पर हो सकता है। यही क्षेत्र JMM का मुख्य निर्वाचन क्षेत्र रहा है।

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  • Publish Date - September 13, 2024 / 06:33 PM IST,
    Updated On - September 13, 2024 / 06:33 PM IST

Jharkhand Election 2024: झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में JMM और BJP में कांटे का मुकाबला होने वाला है। हेमंत सोरेन सरकार पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप और तुष्टिकरण की राजनीति के आरोप लग रहे हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि ये दोनों ही मुद्दे प्रदेश में आगामी चुनावी नतीजों पर प्रभाव डाल सकते हैं।

हेमंत सोरेन सरकार की ईमानदारी पर भ्रष्टाचार और विभाजनकारी नीतियों की दोहरी चुनौतियों ने कई सवाल उठाए हैं। इसके पारंपरिक वोट बैंक को भी खत्म करने की कोशिश की है। इसका सबसे ज्यादा असर आदिवासी समुदायों पर हो सकता है। यही क्षेत्र JMM का मुख्य निर्वाचन क्षेत्र रहा है।

भ्रष्टाचार के आरोप हेमंत सोरेन सरकार की सबसे बड़ी चुनौती

हेमंत सोरेन सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती भ्रष्टाचार के आरोप हैं। सीएम हेमंत सोरेन हाल ही में मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में जेल गए थे। भूमि घोटालों से संबंधित आरोप, अवैध भूमि सौदों में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा चल रही जांच ने धोखाधड़ी का भी खुलासा किया है। इन खुलासों ने जेएमएम की छवि को न सिर्फ नुकसान पहुंचाया बल्कि कई सवाल भी पैदा किए।

Jharkhand Election 2024 झारखंड में खासकर आदिवासी समुदायों के लिए भूमि स्वामित्व और संसाधन प्रबंधन संवेदनशील मुद्दे हैं। इन क्षेत्रों में भ्रष्टाचार लोगों के विश्वास पर चोट करता है। आदिवासी अधिकारों और समान विकास की वकालत करने वाली जेएमएम पार्टी के लिए ये घोटाले उसके मूलभूत सिद्धांतों के साथ विश्वासघात का उदाहरण बन रहे हैं।

चुनावों के नजदीक आते ही विपक्षी पार्टियां हेमंत सरकार पर लगे रहे भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के सामने ला रही हैं। भाजपा JMM को अपना नैतिक दिशा-निर्देश खो देने वाली पार्टी के तौर पर जनता के सामने पेश कर रही है।

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तुष्टिकरण की राजनीति भी पहुंचा रही हानि

हेमंत सरकार द्वारा कुछ अल्पसंख्यक समुदायों को खुश करने के कथित प्रयासों से आदिवासी समाज में आक्रोश को जन्म को दिया है। तुष्टिकरण की राजनीति की वहज से आदिवासी वोट अलग थलग दिख रहा है। जेएमएम को तुष्टिकरण की राजनीति भी हानि पहुंचा सकती है। तुष्टिकरण की राजनीति इनके पार्टी के लिए एक रिवायत की तरह है। सरकारी भूमि पर चर्च, कब्रिस्तान और अन्य धार्मिक संरचनाओं के अवैध निर्माण की रिपोर्ट ने आदिवासी क्षेत्रों में तनाव बढ़ाया है। हजारीबाग और सिमडेगा जैसे जिलों में अवैध निर्माण की खबरें सामान्य सी बात हो गई है।

राज्य में सबसे विवादास्पद घटनाओं में से एक में कब्रिस्तान बनाने के लिए पवित्र स्थल जाहेरथान की भूमि को जब्त करने का प्रयास शामिल है। इसने आदिवासी समूहों में आक्रोश को भड़काया है, जो इन कदमों को अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान पर हमला मानते हैं। इस तरह की कार्रवाइयों से आदिवासी मतदाता में फूट पड़ी है। आदिवासी वोटरों का अलग-थलग होना जेएमएम के लिए चुनाव में जोखिम भरा साबित हो सकता है।

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भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण को लेकर जेएमएम पर हावी हुई भाजपा

भारतीय जनता पार्टी अपने को सोरेन सरकार के विकल्प के रूप में पेश कर रही है। भाजपा जेएमएम पर भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण को लेकर हावी है। भाजपा भ्रष्टाचार पर ध्यान केंद्रित करके राज्य में स्वच्छ शासन के लिए मतदाताओं को लुभाने में लगी है। भाजपा एक ईमानदार सरकार चलाने के लिए वादा कर रही है।

भाजपा का “मिला क्या?” अभियान से भी उनको फायदा मिल रहा है। भाजपा का “मिला क्या?” अभियान सोरेन सरकार की उपलब्धियों और अधूरे वादों पर सवाल उठाता है। सोरेन सरकार की तुष्टिकरण नीतियों की आलोचना उसे आदिवासी मतदाताओं को एकजुट कर रही है। जो कि झामुमो के कामों को देखकर ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

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