कोझिकोड, 24 जनवरी (भाषा) अभिनेता नसीरुद्दीन शाह का मानना है कि सिनेमा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य अपने समय का रिकार्ड रखना है लेकिन उन्हें चिंता है कि अगर भविष्य की पीढ़ियां आज के भारत को समझने के लिए बॉलीवुड फिल्मों को देखेंगी तो यह एक बड़ी त्रासदी होगी।
‘निशांत’, ‘आक्रोश’, ‘स्पर्श’ और ‘मासूम’ जैसी फिल्मों में अपने दमदार अभिनय के लिए मशहूर शाह ने केरल साहित्य महोत्सव (केएलएफ) के आठवें संस्करण में यह बात कही।
उन्होंने अभिनेत्री पार्वती थिरुवोथु के साथ बातचीत में कहा, “मुझे लगता है कि गंभीर सिनेमा का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य दुनिया में बदलाव लाना नहीं है। मुझे नहीं लगता कि एक फिल्म देखने के बाद किसी की सोच बदल जाती है, चाहे वह कितनी भी शानदार क्यों न हो। हां, इससे आपको कुछ सवाल उठाने में मदद मिल सकती है। लेकिन मेरे विचार से सिनेमा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य अपने समय का रिकॉर्ड रखना है। ”
उन्होंने कहा, “ये फिल्में 100 साल बाद देखी जाएंगी, और अगर 100 साल बाद लोग जानना चाहेंगे कि 2025 का भारत कैसा था, और उन्हें कोई बॉलीवुड फिल्म मिल जाए, तो मुझे लगता है कि यह एक बड़ी त्रासदी होगी।”
शाह ने उन कठिनाइयों को भी उजागर किया, जिनका सामना फिल्म निर्माताओं को समय की वास्तविकताओं को दर्शातीं फिल्में बनाते समय करना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि सच्चाई को दर्शाने का प्रयास करने वाली फिल्मों को अक्सर प्रतिबंध का सामना करना पड़ता है या दर्शक पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, क्योंकि उनमें फिल्मों को सफल बनाने वाले व्यावसायिक तत्वों की कमी होती है।
भाषा जोहेब मनीषा
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