ISRO RLV Pushpak landing: इसरो की बड़ी उपलब्धि.. कराई गई ‘पुष्पक’ विमान की लगातार तीसरी सफल लैंडिंग, आप भी देखें तस्वीर..

सफल लैंडिंग के बाद इसरो ने कहा, “आरएलवी-एलईएक्स-03 की ज्यादा चुनौतीपूर्ण परिस्थियों में तेज हवाओं के साथ ऑटोमैटिक लैंडिंग कराई गई।

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  • Publish Date - June 23, 2024 / 11:07 AM IST,
    Updated On - June 23, 2024 / 11:07 AM IST

बेंगलुरु: ISRO एक बार फिर कमाल कर दिखाया है। लगातर तीसरी बार रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल-एलईएक्स-03 (RLVLEX-03) ‘पुष्पक’ की सफल लैंडिंग की है। जानकारी के अनुसार, इसरो की तरफ से आरएलवी पुष्पक विमान का परीक्षण सुबह 7.10 बजे बेंगलुरु से लगभग 220 किमी दूर चित्रदुर्ग जिले के चल्लाकेरे में एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज (ISRO RLV Pushpak landing Live) में किया गया था।

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विमान को भारतीय वायुसेना के चिनूक हेलिकॉप्टर से 4.5 किमी की ऊंचाई तक ले जाया गया और रनवे पर लैंडिंग के लिए छोड़ा गया। रविवार 23 जून को लैंडिंग की गई है।

What is ISRO’s RLV project?

आरएलवी परियोजना क्या है?

इसरो की आरएलवी परियोजना एक जरूरी कार्यक्रम है। ये अंतरिक्ष में मानव की निरंतर उपस्थिति की आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करेगा। भारत की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए ये मिशन काफी जरूरी है। RLV-LEX-03 का उद्देश्य वाहन के प्रदर्शन, मार्गदर्शन और लैंडिंग क्षमताओं में सुधार करना है। आरएलवी को विकसित करने वाले विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) के निदेशक एस उन्नीकृष्णन नायर ने कहा कि दूसरी लैंडिंग की तुलना में, आरएलवी-एलईएक्स3 ज्यादा चुनौतीपूर्ण रहा क्योंकि LEX-02 के दौरान लगभग 150 मीटर की तुलना में इस बार इसका परीक्षण 500 मीटर के साथ किया गया।

इसरो ने क्या कहा

सफल लैंडिंग के बाद इसरो ने कहा, “आरएलवी-एलईएक्स-03 की ज्यादा चुनौतीपूर्ण परिस्थियों में तेज हवाओं के साथ ऑटोमैटिक लैंडिंग कराई गई। आरएलवी ‘पुष्पक’ वाहन को भारतीय वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर से 4।5 किमी की ऊंचाई पर छोड़ा गया था। इसरो ने कहा, “कम लिफ्ट-टू-ड्रैग अनुपात के कारण लैंडिंग की रफ्तार 320 किमी प्रति घंटे से अधिक थी। (ISRO RLV Pushpak landing Live) इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक कमर्शियल विमान की लैंडिंग रफ्तार 260 किमी प्रति घंटे रहती है। जबकि एक लड़ाकू विमान की लैंडिंग रफ्तार 280 किमी प्रति घंटे रहती है”।

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इन संस्थाओं ने किया सपोर्ट

इस मिशन को भारतीय वायु सेना, एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट, एरियल डिलीवरी एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट, सैन्य उड़ान योग्यता एवं प्रमाणन केंद्र के अंतर्गत क्षेत्रीय सैन्य उड़ान योग्यता केंद्र, नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरीज, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कानपुर, इंडियन एयरोस्पेस इंडस्ट्रियल पार्टनर्स, भारतीय तेल निगम और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण से मदद ली थी।

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