ISRO Spadex Mission Launch: इसरो ने फिर रचा एक नया इतिहास, लॉन्च किया स्पेडेक्स मिशन, कई मायनों में है खास

ISRO Spadex Mission Launch: इसरो ने फिर रचा एक नया इतिहास, लॉन्च किया स्पेडेक्स मिशन, कई मायनों में है खास

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  • Publish Date - December 30, 2024 / 11:14 PM IST,
    Updated On - December 30, 2024 / 11:14 PM IST

आंध्रप्रदेश।ISRO Spadex Mission Launch: इसरो ने पिछले कई सालों में बड़े-बड़े कीर्तिमान बनाए हैं। यही वजह है की इसरो अब अमेरिका के नासा जैसे स्पेस ऑर्गेनाइजेशन को कड़ी टक्कर दे रहा है। इसी बीच इसरो ने एक बार आज इतिहास रच दिया है। इसरो ने आज सोमवार को श्रीहरिकोटा से रात 10:00 बजे एक पीएसएलवी रॉकेट के जरिए अपने Spadex मिशन (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट) को लॉन्च किया है। इसरो इसे भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में ‘एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर’ बताया है। ये पहली बार होगा जब इसरो पृथ्वी से 470 किलोमीटर ऊपर 2 रॉकेट्स की डॉकिंग और अनडॉकिंग करेंगे। यानी हजारों किमी. की रफ्तार से उड़ते हुए 2 स्पेसक्राफ्ट को पहले जोड़ा जाएगा फिर उन्हें अलग किया जाएगा। यही वजह है कि इस लॉन्चिंग को बेहद अहम माना जा रहा है।

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टाइमिंग में किया था बदलाव

माना जा रहा है कि इसरो के इस मिशन की सफलता ही भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) के बनने और चंद्रयान-4 (Chandrayaan-4) मिशन की सफलता को तय करेगा। बता दें कि, पहले इसरो अपने स्पेस डॉकिंग मिशन स्पेडेक्स की लॉन्चिंग सोमवार रात 9.58 पर करने वाला था, लेकिन अब यह लॉन्चिंग दो मिनट की देरी से रात 10 बजे कर दिया। हालांकि लॉन्चिंग के समय में इस बदलाव की वजह इसरो ने नहीं बताई है।

क्यों खास है ये मिशन

चंद्रयान-4 मिशन में इसी डॉकिंग-अनडॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल होगा। यानी चंद्रयान-4 मिशन की कामयाबी स्पेडेक्स की सफलता पर निर्भर करती है। नासा की तरह अपना खुद का स्पेस स्टेशन बनाने में इसी मिशन की तकनीक का इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा सैटेलाइट सर्विसिंग, इंटरप्लेनेटरी मिशन और इंसानों को चंद्रमा पर भेजने के लिए भी ये टेक्नोलॉजी जरूरी है। ISRO के मुताबिक जब एक ही मिशन को कई चरणों में लॉन्च किया जाता है तो ये तकनीक जरूरी होती है।

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ISRO Spadex Mission Launch:  ISRO ने बताया कि, यह तकनीक तब जरूरी होती है जब एक ही मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कई रॉकेट लॉन्च की जरूरत पड़ती है। अगर यह मिशन सफल होता है, तो भारत दुनिया का चौथा देश बन गया, जो इस तकनीक को हासिल कर चुका है। अब तक अमेरिका, चीन और रूस के पास ही ये तकनीक है।

 


 

 

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