#SarkarOnIBC24: इमरजेंसी के 50 साल, सियासी उबाल! क्या आज के दौर में आपातकाल पर सियासत प्रासंगिक रह गई है? देखिए रिपोर्ट

#SarkarOnIBC24: इमरजेंसी के 50 साल, सियासी उबाल! क्या आज के दौर में आपातकाल पर सियासत प्रासंगिक रह गई है? देखिए रिपोर्ट

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  • Publish Date - June 24, 2024 / 11:59 PM IST,
    Updated On - June 24, 2024 / 11:59 PM IST

नई दिल्ली: बीजेपी आपातकाल की बरसी पर मंगलवार को देशव्यापी प्रदर्शन करने जा रही है। कांग्रेस और बीजेपी के बीच इसे लेकर सियासी संग्राम छिड़ा है। कांग्रेस बीजेपी को जहां फासीवादी करार दे रही है वहीं बीजेपी कांग्रेस को आपातकाल की याद दिला रही है। सवाल ये कि पांच दशक बाद क्या आज के दौर में आपातकाल पर सियासत प्रासंगिक रह गई है? क्या फासीवाद के आरोप तले अब आपातकाल का कलंक दबने लगा है? क्या आपातकाल के जरिए बीजेपी कांग्रेस पर प्रेशर पॉलिटिक्स का इस्तेमाल करती है?

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25 जून 1975 की रात को देश में आपातकाल घोषित किया गया था। वक्त को बीते आधा दशक यानि 50 साल होने को है लेकिन फिर ना उस दौर के लोग इसे भुला सके और ना इस पर सियासत कम हुई। भाजपा इस दिन को काला दिवस के रूप में मनाती रही है। इस बार भी 25 जून को भाजपा ने देश भर में काला दिवस मनाने का ऐलान किया है। संसद सत्र शुरू होने से पहले पीएम मोदी ने आपातकाल का जिक्र करते हुए कहा कि 50 साल पहले इसी दिन संविधान पर काला धब्बा लगा दिया गया था। हम कोशिश करेंगे कि देश में कभी भी ऐसी कालिख न लग सके।

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संसद सत्र के पहले दिन लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए पक्ष और विपक्ष दोनों ही तरफ से विरोध प्रदर्शन किया गया। भाजपा सांसदों ने जहां आपातकाल को काला अध्याय बताया तो कांग्रेस सांसदों ने केंद्र सरकार पर तानाशाही करने का आरोप लगाते हुए हाथ में संविधान की प्रति लेकर नारेबाजी की।

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आपातकाल के विरोध में भाजपा ने 25 जून को देशभर में काला दिवस मनाने का ऐलान किया है। इस पर अब सियासी घमासान मचा है। भाजपा का कहना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने संविधान के नाम पर झूठ परोसा जिसका सच देश के सामने लाया जाएगा, तो वहीं कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि देश में तानाशाही की सरकार चल रही है। ये अघोषित आपातकाल जैसा है।

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तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा लगाया गया आपातकाल 25 जून 1975 की आधी रात से 21 मार्च 1977 तक जारी रहा। आपातकाल को भारतीय राजनीति के इतिहास का काला अध्याय भी माना जाता है। इस घटना के 5 दशक बाद भी ये मुद्दा देश की सियासत के केंद्र में है। पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान भी संविधान के खतरे में होने की दुहाई पक्ष और विपक्ष दोनों ही तरफ से दी जाती रही। सवाल ये है कि आपातकाल की याद क्या अब सियासी रवायत बन गई है। या सिर्फ राजनीतिक दल सियासी नफे के लिए संविधान के नाम का इस्तेमाल करते हैं?

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