नई दिल्ली। दिल्ली हिंसा के वक्त गोकलपुरी में तैनात एसीपी आईपीएस अनुज कुमार भी गंभीर रुप से घायल हुए हैं, उनका इलाज जारी है। अनुज कुमार के साथ तैनात हेड कांस्टेबल रतनलाल हिंसा के दौरान मौत हो गई थी। शाहदरा के डीसीपी अमित शर्मा को भी इन्होंने ही बचाया था। अमित शर्मा भी इस समय गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती हैं। अनुज कुमार के बयान के मुताबिक – ’24 तारीख की सुबह मैं डीसीपी शाहदरा सर और मेरा पूरा ऑफिस स्टाफ और दो कंपनी बल के साथ चांदबाग मज़ार के पास हमारी तैनाती थी, एक दिन पहले जो काफी सारे लोग वज़ीराबाद रोड पर सड़क की एक तरफ इकठ्ठा हो गए थे, हमें निर्देश ये थे कि सड़क पर कोई न बैठे, क्लीन रहे, वहां पास में ही एक जगह विरोध प्रदर्शन चल रहा था। वहां 35-40 दिनों से विरोध चल रहा था। हमारा उद्देश्य यही था कि यातायात सुगम बना रहे क्योंकि वज़ीराबाद रोड आगे भूपरा बॉर्डर और ग़ाज़ियाबाद रोड को जोड़ती है। काफी यातायात सर्वाधिक होता है।
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अनुज कुमार ने आगे बताया, ‘भीड़ धीरे-धीरे सर्विस रोड पर बढ़ना शुरू हुई,काफी सारी महिलाएं और पुरुष इकट्ठे होने लगे थे, भीड़ ने महिलाओं को आगे कर दिया था। बच्चे भी महिलाओं के साथ थे। शायद एक दिन पहले उन्होंने वज़ीराबाद रोड घेर ली थी तो उन्हें लग रहा था हमें और आगे आने दिया जाए। हम उनको धीरे-धीरे समझा रहे थे। मुझे बाद में पता चला कि शायद वहां इस तरह की अफवाह फैली की पुलिस ने फायरिंग कर दी है जिसमें कुछ महिलाएं और बच्चे मारे गए हैं। शायद वहां इस तरह की बातें होने लगीं और भीड़ बढ़ती गयी,सर्विस रोड पर कुछ कंस्ट्रक्शन का काम भी चल रहा है। कंस्ट्रक्शन मटेरियल पत्थर वगैरह ये सब चीज़े वहां पड़ी हुई थीं। ये पूरा वाकया मुश्किल से 20-25 मिनट का था। भीड़ बहुत ज्यादा हो गई, हम उन्हें धीरे धीरे हटा ही रहे थे कि पत्थरबाजी शुरू हो गई। मैं पीछे देखता हूं तो लोगों के हाथ में कुदाल ,बेलचा और फावड़े थे। हालांकि हमारे पास 2 कंपनियां थीं लेकिन वहां की स्थितियां ऐसी बनी कि हम उनसे दूर हो गए। भीड़ 35-40 हज़ार के बीच पहुंच गई थी। दूसरा हमारे और उनके बीच दूरी बहुत कम थी। हमारे पीछे डिवाइडर और सामने 15-20 मीटर की दूरी पर इतनी भीड़ थी, जब पत्थरबाजी शुरू हुई तो पहले तो हमने उन्हें तीतर बितर करने की कोशिश की। लेकिन लोग इतने ज्यादा थे कि हमारी फ़ोर्स थोड़ा बिखर गई।
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अनुज कुमार ने बताया कि हम एक तरह से फंस गए थे, तीनों तरफ से भीड़ और पीछे ग्रिल थी, 5-6 मिनट बाद मैं डीसीपी सर को देख रहा था कि वो कहां हैं। भीड़ की वजह से वो 5-6 मीटर छिटक गए थे। मैंने देखा कि डिवाइडर के पास सर बेहोश हालत में पड़े थे। उनके मुंह से खून आ रहा था। 35-40 लोगों का एक दल लगातार पत्थर फेंक रहा था और भीड़ उनके पीछे थी। बसे पहले मैं यही कोशिश कर रहा था कि मैं सर को लेकर फटाफट यहां से निकलूं। भीड़ के पास डंडे के अलावा भी सब कुछ था। उनके पास हथियार थे, उसका मुझे तब तक आइडिया नहीं था। लेकिन जब अगले दिन रतन का पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि उसे गोली लगी है, जब हम वापस जा रहे थे तब ऐसा दिखा कि कुछ लोगों के पास हथियार हैं,उस वक्त मेरे पास 2 लोग और आ गए थे एक सर का कमांडो था और एक कांस्टेबल था।
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हम सर को निकालने की कोशिश कर रहे थे। भीड़ को देखते हुए एक बार मन में ये भी आया कि फायरिंग कर देते हैं। इससे हो सकता है भीड़ एकदम से भाग जाए लेकिन हमारे और भीड़ के बीच दूरी बहुत कम थी, फायरिंग से शायद वो भाग जाते या फिर हम पर और उग्र होकर हमला करते। फिर हम और मुश्किल में फंस जाते। फिर हम सर को उठाकर फेंसिंग के ऊपर से यमुना विहार की तरफ लेकर निकले। रतनलाल भी मेरे साथ ही था लेकिन भीड़ ने जब हमला किया तो हम डिवाईडर के पास ही थे, लेकिन जब रतनलाल को चोट लगी तो उसको दूसरा स्टाफ ले गया था एक छोटे नर्सिंग होम में, फिर मैं सर को लेकर सड़क क्रॉस कर पहले एक घर में घुसा एक परिवार से हमने मदद मांगी तो उन्होंने बताया कि यहां थोड़ी दूरी पर एक नर्सिंग होम है। फिर हम वहां गए वहां वो लोग रतन को लेकर पहले ही आ गए थे।
उस समय तक हमें आइडिया नहीं था कि रतन को गोली लगी है क्योंकि हमने एन्टी रॉइट जैकेट पहनी हुई थी।रतनलाल कोई जबाब नहीं दे रहा था उसे वहीं छोड़कर फिर हम डीसीपी सर को लेकर मैक्स अस्पताल गए। मेरे सिर गर्दन में चोटें हैं,लेकिन वहां जो हालात थे उसे देखते हुए मेरी कंडीशन अब ठीक ही है।