नयी दिल्ली, सात जनवरी (भाषा) भारतीय शहरों में 2019 से 2024 तक पीएम 2.5 प्रदूषण के स्तर में औसतन 27 प्रतिशत की कमी आई है, जिनमें से राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत आने वाले शहरों में 24 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। एक नयी रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई।
जलवायु प्रौद्योगिकी कंपनी ‘रेस्पिरर लिविंग साइंसेज’ की रिपोर्ट के अनुसार, वाराणसी और मुरादाबाद में पीएम 2.5 का स्तर क्रमशः 76 प्रतिशत और 58 प्रतिशत कम हुआ।
इनके अलावा कलबुर्गी (57.2 प्रतिशत), मेरठ (57.1 प्रतिशत), कटनी (56.3 प्रतिशत), आगरा (54.1 प्रतिशत), बागपत (53.3 प्रतिशत), कानपुर (51.2 प्रतिशत) और जोधपुर (50.5 प्रतिशत) में भी प्रदूषण में कमी देखी गई।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘जिन शहरों पर नजर रखी गई, उन सभी में 2019 से पीएम 2.5 के स्तर में 27 प्रतिशत की गिरावट के साथ वायु गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। एनसीएपी (राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम) शहरों में 24 प्रतिशत की कमी आई है, जो वायु प्रदूषण से निपटने में प्रगति दर्शाता है।’’
इन सुधारों के बावजूद कई शहर अत्यधिक प्रदूषित बने हुए हैं।
दिल्ली में 2024 में पीएम 2.5 का स्तर 107 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर दर्ज किया गया था जबकि असम के बर्नीहाट में यह 127.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया।
अन्य अत्यधिक प्रदूषित शहरों में गुरुग्राम (96.7 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर), फरीदाबाद (87.1 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर), श्री गंगानगर (85.5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) और ग्रेटर नोएडा (83.9 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) शामिल हैं।
सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में मुजफ्फरनगर (83.2 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर), दुर्गापुर (82.0 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर), आसनसोल (80.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) और गाजियाबाद (79.9 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) भी शामिल हैं।
‘रेस्पिरर लिविंग साइंसेज’ के संस्थापक रौनक सुतारिया ने कहा, ‘‘भारत की वायु गुणवत्ता आशा और सावधानी दोनों की कहानी है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वाराणसी जैसे शहरों ने 76.4 प्रतिशत की कमी के साथ उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है, लेकिन दिल्ली-एनसीआर, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश सहित उत्तरी क्षेत्रों में प्रदूषण की स्थिति गंभीर बनी हुई है।’’
भारत ने 2019 में एनसीएपी की शुरुआत की थी, जिसका लक्ष्य 2017 को आधार वर्ष मानकर 2024 तक पीएम 2.5 प्रदूषण में 20-30 प्रतिशत की कमी लाना था।
बाद में लक्ष्य को संशोधित कर 2026 तक 40 प्रतिशत की कमी कर दिया गया। इसका आधार वर्ष 2019-20 था।
भाषा सिम्मी प्रशांत
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