नयी दिल्ली, 13 नवंबर (भाषा) अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक समूह के नए अनुसंधान के अनुसार, 2024 में भारत के जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि चीन में 0.2 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हो सकती है।
अजरबैजान के बाकू में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए खरबों डॉलर जुटाने पर चर्चा के बीच ‘ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट’ नाम वाले वैज्ञानिकों के समूह ने चेतावनी दी कि जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जन, जो कि तापमान वृद्धि का मुख्य कारण है, 2024 में रिकॉर्ड 37.4 अरब टन तक पहुंच सकता है, जो 2023 के स्तर से 0.8 प्रतिशत अधिक है।
यह स्थिति नवीकरणीय या अक्षय ऊर्जा में तीव्र वृद्धि तथा पिछले वर्ष दुबई में सीओपी28 सम्मेलन में जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाने के लिए हुए ऐतिहासिक समझौते के बावजूद है।
‘ग्लोबल कार्बन बजट 2024’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्बन डाईऑक्साइड (सीओ2) का कुल वैश्विक उत्सर्जन 2023 में 40.6 अरब टन था जो 2024 में बढ़कर 41.6 अरब टन हो सकता है। यह साल सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया जा सकता है।
एक्सेटर के ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर और प्रमुख अध्ययनकर्ता पियरे फ्राइडलिंगस्टीन ने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तेजी से नाटकीय होते जा रहे हैं, जबकि हमें अभी ऐसा कोई संकेत नहीं दिख रहा है कि जीवाश्म ईंधनों का जलना अपने चरम पर पहुंच गया है।’’
‘ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट’ से जुड़े लोगों ने कहा कि दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले भारत देश में जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।
संयुक्त राष्ट्र की पिछले महीने जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 2023 में 6.1 प्रतिशत बढ़ गया और उसकी वैश्विक उत्सर्जन में आठ प्रतिशत हिस्सेदारी रही।
भाषा वैभव मनीषा
मनीषा