नयी दिल्ली, 21 जनवरी (भाषा) विश्व बैंक द्वारा नियुक्त एक तटस्थ विशेषज्ञ ने किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच कुछ विवादों को सुलझाने के लिए रूपरेखा पर नयी दिल्ली के रुख का समर्थन किया है।
भारत जहां मुद्दों का समाधान तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा किये जाने पर दबाव डाल रहा है, जैसा कि दोनों देशों के बीच सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) के तहत अधिदेशित है, पाकिस्तान इनके समाधान के लिए हेग में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय पर जोर दे रहा है।
भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की वार्ता के बाद 19 सितंबर, 1960 को आईडब्ल्यूटी पर हस्ताक्षर किए थे, जिसका एकमात्र उद्देश्य सीमापार नदियों से संबंधित मुद्दों का प्रबंधन करना था।
भारत ने तटस्थ विशेषज्ञ, ‘इंटरनेशनल कमीशन आफ लार्ज डैम्स’ अध्यक्ष माइकल लीनो के फैसले का स्वागत किया है।
सोमवार को लीनो ने निर्णय दिया था कि वह दो जलविद्युत परियोजनाओं पर भारत और पाकिस्तान के बीच ‘‘मतभेदों के गुण-दोष’’ पर निर्णय देने के लिए सक्षम हैं।
विदेश मंत्रालय (एमईए) ने कहा, ‘‘भारत सिंधु जल संधि, 1960 के अनुलग्नक एफ के पैराग्राफ 7 के तहत तटस्थ विशेषज्ञ द्वारा दिए गए निर्णय का स्वागत करता है।’’
मंत्रालय ने मंगलवार को जारी बयान में कहा, ‘‘यह निर्णय भारत के इस रुख का समर्थन और पुष्टि करता है कि किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं के संबंध में तटस्थ विशेषज्ञ को भेजे गए सभी सात प्रश्न संधि के तहत उसकी क्षमता के अंतर्गत आते हैं।’’
वर्ष 2015 में पाकिस्तान ने दोनों परियोजनाओं पर अपनी आपत्तियों से निपटने के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति की मांग की थी। हालांकि, एक साल बाद इस्लामाबाद ने मांग की कि आपत्तियों को मध्यस्थता न्यायालय द्वारा निस्तारित किया जाए।
भारत तटस्थ विशेषज्ञ के साथ सहयोग कर रहा है, लेकिन हेग में स्थायी मध्यस्थता न्यायालय की कार्यवाही से दूर रहा है।
नयी दिल्ली विवाद को सुलझाने के लिए दो समवर्ती प्रक्रियाओं की शुरुआत को आईडब्ल्यूटी में निर्धारित श्रेणीबद्ध तंत्र के प्रावधान का उल्लंघन मानता है।
विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘‘भारत का यह लगातार और सैद्धांतिक रुख रहा है कि संधि के तहत केवल तटस्थ विशेषज्ञ के पास ही इन मतभेदों पर निर्णय करने की क्षमता है। अपनी क्षमता को बरकरार रखते हुए, जो भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है, तटस्थ विशेषज्ञ अब अपनी कार्यवाही के अगले (गुण-दोष) चरण में आगे बढ़ेगा।’’
विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह चरण सात मतभेदों में से प्रत्येक के गुण-दोष पर अंतिम निर्णय के साथ समाप्त होगा।
उसने कहा, ‘‘संधि की सुचिता को बनाये रखने के लिए प्रतिबद्ध होने के नाते, भारत तटस्थ विशेषज्ञ प्रक्रिया में भाग लेना जारी रखेगा ताकि मतभेदों को संधि के प्रावधानों के अनुरूप तरीके से सुलझाया जा सके, जो समान मुद्दों पर समानांतर कार्यवाही का प्रावधान नहीं करता है।’’
उसने कहा, ‘‘इस कारण से, भारत अवैध रूप से गठित मध्यस्थता न्यायालय की कार्यवाही को मान्यता नहीं देता या उसमें भाग नहीं लेता है।’’
विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत और पाकिस्तान सिंधु जल संधि में संशोधन और समीक्षा के मामले पर भी संपर्क में हैं।
भाषा
अमित माधव
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