नयी दिल्ली, 27 जून (भाषा) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बृहस्पतिवार को कहा कि ‘‘भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा’’ (आईएमईसी) 21वीं सदी के ‘‘सबसे बड़े परिवर्तनकारी कारकों’’ (गेमचेंजर) में से एक साबित होगा।
मुर्मू ने यह भी कहा कि 21वीं सदी के इस तीसरे दशक में आज ‘ग्लोबल ऑर्डर’ (वैश्विक अनुक्रम) एक नयी शक्ल ले रहा है और सरकार के प्रयासों से आज भारत ‘विश्वबंधु’ के रूप में दुनिया को नया भरोसा दे रहा है।
वह 18वीं लोकसभा में पहली बार संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि मानव-केंद्रित रुख की वजह से ही भारत किसी भी संकट के समय में मदद का हाथ बढ़ाने वाला पहला देश बनकर सामने आता है और यह ‘ग्लोबल साऊथ’ की बुलंद आवाज बना है।
‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। ज्यादातर ‘ग्लोबल साउथ’ देश औद्योगीकरण वाले विकास की दौड़ में पीछे रह रह गए। इनका उपनिवेश वाले देश के पूंजीवादी और साम्यवादी सिद्धांतों के साथ विचारधारा का भी टकराव रहा है।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘कोरोना वायरस महामारी का महासंकट हो अथवा भूकंप जैसी कोई त्रासदी या फिर युद्ध की स्थितियां, भारत मानवता को बचाने में आगे रहा है।’’
मुर्मू ने कहा कि भारत को देखने का विश्व का नज़रिया कैसे बदला है, यह इटली में संपन्न जी7 शिखर सम्मेलन में भी सबने अनुभव किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत ने जी20 की अपनी अध्यक्षता के दौरान भी विश्व को अनेक मुद्दों पर एकजुट किया। भारत की अध्यक्षता के दौरान ही अफ्रीकी यूनियन को जी20 का स्थाई सदस्य बनाया गया तथा इससे अफ्रीका महाद्वीप के साथ-साथ पूरे ग्लोबल साउथ का भरोसा मजबूत हुआ है।’’
राष्ट्रपति ने पड़ोसी देशों के साथ अपने मजबूत होते रिश्तों का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘पड़ोसी प्रथम’ की नीति पर चलते हुए भारत ने पड़ोसी देशों के साथ अपने रिश्तों को मजबूत किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘सात पड़ोसी देशों के नेताओं का नौ जून को केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेना सरकार की इस प्राथमिकता को दर्शाता है।’’
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत ‘सबका साथ-सबका विकास’ की भावना के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ भी सहयोग बढ़ा रहा है।
उन्होंने कहा कि पूर्वी एशिया हो या फिर पश्चिम एशिया और यूरोप, सरकार कनेक्टिविटी पर बहुत बल दे रही है। उन्होंने कहा कि भारत के नजरिये ने ही आईएमईसी को आकार देना शुरू किया है। उन्होंने कहा, ‘‘यह गलियारा 21वीं सदी के सबसे बड़े ‘परिवर्तनकारी कारकों’ में से एक सिद्ध होगा।’’
भाषा सुरेश मनीषा
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