नयी दिल्ली, एक जनवरी (भाषा) भारत के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 2019 की तुलना में 2020 में 7.93 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि 2005 से 2020 के बीच इसकी कुल ‘उत्सर्जन तीव्रता’ में 36 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी। संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कार्यालय को प्रस्तुत किए गए नए आंकड़ों से यह जानकारी मिली है।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) को 30 दिसंबर को सौंपी गई अपनी चौथी द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट (बीयूआर-4) में भारत ने कहा कि 2020 में उसका कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (भूमि उपयोग, भूमि उपयोग परिवर्तन और वानिकी यानी ‘एलयूएलयूसीएफ’ को छोड़कर) 295.9 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य (एमटीसीओ2ई) था। एलयूएलयूसीएफ सहित, उत्सर्जन 2,437 एमटीसीओ2ई था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल राष्ट्रीय उत्सर्जन (एलयूएलयूसीएफ सहित) 2019 की तुलना में 7.93 प्रतिशत कम हुआ, लेकिन 1994 से यह 98.34 प्रतिशत बढ़ गया।
भारत आर्थिक विकास को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से अलग करने की कोशिश कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2005 से 2020 के बीच भारत की कुल ‘उत्सर्जन तीव्रता’ में 36 प्रतिशत की गिरावट आई है।
विकासशील देशों द्वारा हर दो साल में यूएनएफसीसीसी को द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट (बीयूआर) प्रस्तुत की जाती है, जिसमें उत्सर्जन, जलवायु कार्रवाई की प्रगति तथा शमन आदि में मदद की आवश्यकताओं के बारे में अद्यतन जानकारी दी जाती है।
‘उत्सर्जन तीव्रता’ का तात्पर्य जीडीपी की प्रति इकाई के मद्देनजर उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा से है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने 2005 से 2021 के दौरान 2.29 अरब टन का अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाया है।
अक्टूबर 2024 तक देश में गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन क्षमता की हिस्सेदारी 46.52 प्रतिशत थी।
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नोमान सुरेश
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