नयी दिल्ली, 10 दिसंबर (भाषा) विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) के घटक दलों ने राज्यसभा में आसन और विपक्ष के तल्ख रिश्तों के बीच मंगलवार को सभापति जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद से हटाने के लिए प्रस्ताव लाने संबंधी नोटिस मंगलवार को सौंपा।
विपक्ष का आरोप है कि धनखड़ द्वारा अत्यंत पक्षपातपूर्ण तरीके से राज्यसभा की कार्रवाई संचालित करने के कारण यह कदम उठाना पड़ा है।
नोटिस पर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, द्रमुक, समाजवादी पार्टी और कई अन्य विपक्षी दलों के 60 नेताओं ने हस्ताक्षर किए हैं। कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी, नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, द्रमुक नेता तिरुची शिवा और तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओब्रायन के हस्ताक्षर इस नोटिस पर नहीं हैं।
समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, तृणमूल कांग्रेस के सुखेंदु शेखर रॉय, राज्यसभा में कांग्रेस के उप नेता प्रमोद तिवारी, मुख्य सचेतक जयराम रमेश, वरिष्ठ नेता राजीव शुक्ला तथा कई अन्य वरिष्ठ सदस्यों ने धनखड़ के खिलाफ दिए गए नोटिस पर हस्ताक्षर किए हैं।
विपक्षी दलों द्वारा सभापति धनखड़ के विरुद्ध यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब लोकसभा एवं राज्यसभा, दोनों सदनों में सत्ता पक्ष ने अमेरिकी उद्योगपति जार्ज सोरोस के मुद्दे पर काग्रेस और उसके शीर्ष नेतृत्व पर हमला तेज कर दिया है।
कांग्रेस महासचिव रमेश ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि ‘इंडिया’ गठबंधन के सभी घटक दलों ने एकजुट होकर सर्वसम्मति से राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन किया है।
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘माननीय सभापति, बहुत विद्वान हैं, जाने-माने संवैधानिक वकील हैं, राज्यपाल रहे हैं, बहुत वरिष्ठ व्यक्ति हैं। जिनका हम सम्मान करते हैं… लेकिन हमें यह करने के लिए विवश होना पड़ा है। हमें बहुत दुख के साथ और भारी मन से यह कदम उठाना पड़ा है। यह राज्यसभा के 72 साल के इतिहास में पहली बार है कि किसी सभापति के खिलाफ प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया गया है।’’
रमेश ने दावा किया कि धनखड़ जिस तरह से सदन का संचालन करते हैं उससे स्पष्ट दिखता है कि उनका रवैया पक्षपातपूर्ण है।
क्रिकेट मैच की शब्दावली का इस्तेमाल करते हुए रमेश का कहना था, ‘‘वह एक अंपायर की भूमिका में हैं और एक अंपायर पक्षपात नहीं करता है… लेकिन यहां अंपायर ही पक्षपात ही कर रहा है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने आरोप लगाया, ‘‘सभापति नेता प्रतिपक्ष (मल्लिकार्जुन खरगे) की बात नहीं सुन रहे हैं, वह सत्तापक्ष के सांसदों को हमारे सबसे वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक भाषा में आरोप लगाने की इजाजत दे रहे हैं और उन्हें ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे हैं।’’
इससे पहले, रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘राज्यसभा के माननीय सभापति द्वारा अत्यंत पक्षपातपूर्ण तरीके से उच्च सदन की कार्यवाही का संचालन करने के कारण इंडिया गठबंधन के सभी घटक दलों के पास उनके खिलाफ औपचारिक रूप से अविश्वास प्रस्ताव लाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।’’
उन्होंने कहा कि इंडिया गठबंधन की पार्टियों के लिए यह बेहद ही कष्टकारी निर्णय रहा है, लेकिन संसदीय लोकतंत्र के हित में यह कदम उठाना पड़ा है।
उन्होंने बताया कि यह प्रस्ताव अभी राज्यसभा के महासचिव को सौंपा गया है।
इससे पहले, आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने संसद परिसर में संवाददाताओं को बताया कि करीब 60 सांसदों के हस्ताक्षर वाला नोटिस राज्यसभा सभापति के सचिवालय को दिया गया है।
सूत्रों का कहना है कि विपक्षी दलों ने नोटिस देने के लिए अगस्त में भी 60 से अधिक सांसदों के हस्ताक्षर ले लिए थे, लेकिन वे आगे नहीं बढ़े क्योंकि उन्होंने धनखड़ को ‘‘एक और मौका देने’’ का फैसला किया था, लेकिन सोमवार के उनके आचरण को देखते हुए विपक्ष ने इस पर आगे बढ़ने का फैसला किया।
विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता ने सोमवार को कहा था, ‘‘सभापति का आचरण अस्वीकार्य है। वह भाजपा के किसी प्रवक्ता से ज्यादा वफादार दिखने का प्रयास कर रहे हैं।’’
संविधान के अनुच्छेद 67 में उपराष्ट्रपति की नियुक्ति और उन्हें पद से हटाने से जुड़े तमाम प्रावधान किए गए हैं।
संविधान के अनुच्छेद 67(बी) में कहा गया है, “उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक प्रस्ताव, जो सभी सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और लोकसभा द्वारा सहमति दी गई हो, के जरिये उनके पद से हटाया जा सकता है। लेकिन कोई प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जाएगा, जब तक कम से कम 14 दिनों का नोटिस नहीं दिया गया हो, जिसमें यह बताया गया हो ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है।’’
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सहित कांग्रेस के कई सदस्यों ने कई बार सभापति जगदीप धनखड़ पर राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान ‘पक्षपातपूर्ण रवैया’ अपनाने का आरोप लगाया है।
भाषा हक हक माधव
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