(तस्वीरों के साथ)
नयी दिल्ली, 12 नवंबर (भाषा) रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को कहा कि भारत का ड्रोन विनिर्माण के क्षेत्र में वैश्विक केंद्र बनने का लक्ष्य है क्योंकि नयी प्रौद्योगिकियां युद्धकला की अवधारणा में बुनियादी बदलाव ला रही हैं।
एक कार्यक्रम में अपने संबोधन में सिंह ने यह भी कहा कि मोदी सरकार उभरती सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए ‘अनुकूलनकारी रक्षा’ दृष्टिकोण तैयार कर रही है।
उसे विस्तार से सामने रखते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि ‘अनुकूलनकारी रक्षा’ का तात्पर्य महज यह नहीं है जो कुछ हुआ, उसपर कार्रवाई करना है बल्कि यह भी है कि इस बात का अनुमान लगाया जाए कि क्या हो सकता है और फिर उस हिसाब से बढ़-चढ़कर तैयारी करना है।
उन्होंने कहा, ‘‘ संक्षेप में, इसमें अप्रत्याशित और बदलती परिस्थितियों के आलोक में अनुकूलनकारी, नवोन्मेषी और उन्नति करने की मानसिकता एवं क्षमता विकसित करना शामिल है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ परिस्थितिजन्य जागरूकता, रणनीतिक और सामरिक स्तरों पर लचीलापन, स्फूर्ति और भविष्य की प्रौद्योगिकियों के साथ एकीकरण अनुकूलनकारी रक्षा को समझने और उसे बनाने की कुंजी हैं।’’
रक्षा मंत्री ने कहा कि ‘अनुकूलनकारी रक्षा’ भारत की सामरिक संरचनाओं और संचालनगत जवाबी कार्रवाई का ‘मंत्र’ होना चाहिए।
उन्होंने ‘अनुकूलनकारी रक्षा’ को केवल सामरिक विकल्प ही नहीं बल्कि उसे जरूरत बताया।
उन्होंने कहा, ‘‘ जिस प्रकार से हमारे देश के सामने खतरे उभरकर सामने आये हैं, उसी के हिसाब से हमारी रक्षा प्रणालियां और रणनीतियां भी होनी ही चाहिए। हमें सभी भावी आकस्मिक स्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए। यह महज सीमाओं की रक्षा करने से भी अधिक है, यह हमारे भविष्य को सुरक्षित रखना है।’’
मनोहर पार्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण केंद्र में अपने संबोधन में सिंह ने कहा कि भारत का विश्व का ड्रोन (विनिर्माण) केंद्र बनने का लक्ष्य है।
उन्होंने कहा, ‘‘ इस दिशा में कई पहल की गयी हैं । इससे न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी बल्कि यह ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम में बड़ा योगदान होगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ ड्रोन और स्वार्म प्रौद्योगिकी युद्धकला के तौर-तरीकों और साधनों में बुनियादी बदलाव ला रही हैं। इस विकास ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की युद्ध की समझ को पूरी तरह से बदल दिया है।’’
सिंह ने कहा, ‘‘भूमि, वायु और जल तीनों आयामों में युद्धकला की पारंपरिक धारणाएं और अवधारणाएं तेजी से बदल रही हैं। ड्रोन और स्वार्म प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप के कारण इन आयामों को इस तरह देखा जा रहा है कि वे एकदूसरे के क्षेत्र कदम रख रहे हैं।’’
सिंह ने सहयोगात्मक दृष्टिकोण को अपनाने पर बल देते हुए कहा, ‘‘ वर्तमान भू-राजनीतिक आयाम और सीमा-पार के मुद्दे रक्षा के लिए सहयोगात्मक दृष्टिकोण को आवश्यक बनाते हैं। साइबरस्पेस, एआई और क्वांटम और नैनोटेक्नोलॉजी की विशाल संभावनाओं की अस्पष्टताएं, यदि संभव हों तो ज्ञान, दृष्टिकोण, सूचना और रणनीतियों के सहयोग और साझाकरण की मांग करती हैं।’’
भाषा
राजकुमार संतोष
संतोष