नयी दिल्ली, चार दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अवैध रेत खनन को ‘‘गंभीर’’ बताते हुए बुधवार को कहा कि ऐसी गतिविधियों से प्रभावी तरीके से निपटने की जरूरत है। न्यायालय ने तमिलनाडु, पंजाब और मध्य प्रदेश समेत पांच राज्यों से इस मुद्दे पर तथ्य और आंकड़े उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत एम. अलगरसामी द्वारा 2018 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें तमिलनाडु, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में नदियों और समुद्र तटों पर अवैध रेत खनन की सीबीआई जांच का अनुरोध किया गया था।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि अवैध रेत खनन से ‘‘पर्यावरण को भारी क्षति’’ हो रही है और संबंधित प्राधिकारियों ने अनिवार्य पर्यावरणीय योजना और मंजूरी के बिना संस्थाओं को काम करने की अनुमति दे दी है।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि उसे यह जांचने की जरूरत है कि अवैध रेत खनन पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेश के खिलाफ इसी तरह की याचिका शीर्ष अदालत में लंबित है या नहीं।
जब जनहित याचिका दायर करने वाले अलगरसामी की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि राज्य सरकारें कार्रवाई करने के बजाय मामले को दबाने में लगी हैं, तो प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अवैध रेत खनन एक गंभीर मुद्दा है और इससे प्रभावी तरीके से निपटने की जरूरत है।’’
पीठ ने जानना चाहा कि क्या रेत खनन गतिविधियों के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) की आवश्यकता है और यदि ‘‘हां’’, तो इसके लिए क्या चीजें अपेक्षित हैं।
पीठ ने पांचों राज्यों के वकीलों से कहा कि वे सुनवाई की अगली तारीख पर तथ्यों और आंकड़ों के साथ तैयार होकर आएं और जनहित याचिका को 27 जनवरी, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध करने का आदेश दिया।
भाषा शफीक नरेश
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