(तस्वीरों के साथ)
जयपुर, 31 जनवरी (भाषा)पटकथा लेखक-गीतकार जावेद अख्तर ने यह स्वीकार किया है कि आज की दुनिया में, खास तौर पर आईटी क्षेत्र में अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए अंग्रेजी भाषा जरूरी है लेकिन भाषा सीखना अपनी मातृभाषा जानने की कीमत पर नहीं होना चाहिए।
जयपुर साहित्य महोत्सव (जेएलएफ) के दौरान एक सत्र में अख्तर ने कहा, ‘‘अगर आप अपनी मातृभाषा नहीं जानते, तो आप अपनी जड़ों से कट रहे हैं।’’
यहां उन्होंने अपनी पुस्तक ‘ज्ञान सीपियां: पर्ल्स ऑफ विजडम’ का विमोचन किया।
अख्तर ने जोर देकर कहा कि अपनी मूल भाषा को छोड़कर बच्चे अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़ाव खोने का जोखिम उठाते हैं।
अख्तर (80) ने तर्क दिया, ‘‘भाषा सिर्फ संचार का साधन नहीं है; यह हमारी संस्कृति, परंपरा और निरंतरता को आगे ले जाने वाला वाहन है। अगर आप किसी बच्चे को उसकी भाषा से अलग करते हैं, तो आप उसे उसकी संस्कृति, इतिहास और मूल्यों से अलग कर रहे हैं।’’
अख्तर ने कहा कि आज भारत में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा पर व्यापक जोर है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में भेजना चाहते हैं, यहां तक कि निम्न-मध्यम वर्ग के परिवारों के बच्चे भी इसके लिए संघर्ष करते हैं। मैं अंग्रेजी के महत्व को नकार नहीं रहा हूं, लेकिन मेरा मानना है कि किसी अन्य भाषा को सीखना किसी की अपनी भाषा की कीमत पर नहीं होना चाहिए। ’’
अख्तर ने बहुभाषावाद पर जोर दिया, जहां एक व्यक्ति अपनी मूल भाषा में जड़ों को जमाए रखते हुए अंग्रेजी में कुशल होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘आज की दुनिया में हम अंग्रेजी के बिना जीवित नहीं रह सकते, खासकर आईटी क्षेत्र में। लेकिन मैं चाहता हूं कि हमारे बच्चे बहुभाषी बनें, अपनी भाषा के साथ-साथ दूसरों की भाषा भी जानें। अपनी मातृभाषा जानना जरूरी है। जब हम इसे छोड़ देते हैं, तो हम अपनी जड़ों से अपना संबंध खो देते हैं।’’
सत्र में अख्तर के साथ इंजीनियर से परोपकारी और लेखिका बनी सुधा मूर्ति और फिल्म निर्माता अतुल तिवारी भी शामिल हुए।
18वां जयपुर साहित्य महोत्सव तीन फरवरी तक चलेगा।
भाषा नरेश नरेश धीरज
धीरज