नई दिल्ली : presidential election 2022: राष्ट्रपति पद को लेकर आदिवासी चेहरा और झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का नाम फाइनल हो गया है। वे राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए की ओर से उम्मीदवारों में सबसे आगे नजर आ रही थी। भाजपा ने इसकी घोषणा 21 जून को होने वाली एक बैठक के बाद की है। मिली जानकारी के मुताबिक द्रोपदी मुर्मू के नाम को लेकर एनडीए के अन्य घटक दल व बीजू जनता दल ने खासतौर से सहमति जताई थी।
सियासी गलियारे में चर्चा है कि सत्ताधारी दल बीजेपी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए सर्वसम्मति बनाना चाह रहा है। इस बीच पार्टी ने केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को सर्वोच्च पद के उम्मीदवारों की लिस्ट में सबसे ऊपर रखा है। बीजेपी संसदीय बोर्ड एनडीए के भीतर विचार-विमर्श के बाद मंगलवार 21 जून को रात में इनके नाम का एलान कर दिया है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि गुजरात, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए आदिवासी समुदाय पर भाजपा का फोकस है। पार्टी को लगता है कि आदिवासी वोट उसकी योजनाओं की कुंजी है। अभी तक देश में कोई आदिवासी राष्ट्रपति नहीं रहा। इस लिहाज से मुर्मू आदिवासी और महिला, दोनों वर्ग में फिट बैठती हैं। भाजपा कह सकती है कि इसने समुदाय को सशक्त बनाया है और इसका उसे स्पष्ट तौर पर चुनावी लाभ मिल सकता है।
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Draupadi Murmu : ओडिशा के आदिवासी जिले मयूरभंज के रायरंगपुर गांव में जन्मी द्रौपदी मुर्मू झारखंड की प्रथम महिला राज्यपाल होने का गौरव प्राप्त कर चुकी हैं। वह झारखंड की प्रथम महिला राज्यपाल के रूप में भी अपना नाम दर्ज करा चुकी हैं। द्रोपदी 18 मई 2015 से 12 जुलाई 2021 तक झारखंड के राज्यपाल पद पर रहीं। वह झारखंड की नौवीं राज्यपाल रहीं। द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी महिला राज्यपाल हैं। अपने बेहतर फैसलों को लेकर उन्हें जाना जाता है।
झारखंड राजभवन के बिरसा मंडप में आयोजित एक समारोह में राज्य के मुख्य न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह ने उनको पद की शपथ दिलाई थी। तब देश की पहली आदिवासी महिला राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने अंग्रेजी में शपथ ली थी। उन्होंने तब के राज्यपाल डॉ. सैयद अहमद की जगह ली थी, जिन्हें बाद में मणिपुर का राज्यपाल बनाया गया था।
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झारखंड के प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष और कोडरमा से सांसद रवीन्द्र राय का कहना है कि- “बीजेपी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार ने देश के आदिवासी समुदाय को उनका हक देने के प्रयास के तहत एक आदिवासी महिला नेता को राज्यपाल बनाया है। अब अगर उन्हें राष्ट्रपति बनाया जाता है तो इससे पूरे देश में ही नहीं, विश्व में भी अच्छा संदेश जाएगा”। राज्य के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन ने भी द्रौपदी मुर्मू को राज्यपाल बनाए जाने का स्वागत किया था और कहा कि “यह केन्द्र सरकार का अच्छा कदम है”। भाजपा को झामुमो के समर्थन के साथ ही बीजद और आदिवासी होने के नाते अन्य दलों के समर्थन की भी उम्मीद है।
Draupadi Murmu: द्रौपदी मुर्मू साल 2000 से 2004 तक ओडिशा विधानसभा में रायरंगपुर से विधायक रहीं। वह पहली उड़िया नेता हैंं, जिन्हें किसी भारतीय राज्य की राज्यपाल बनाया गया । वह बीजेपी और बीजू जनता दल की गठबन्धन सरकार में 6 मार्च 2000 से 6 अगस्त 2002 तक वाणिज्य और परिवहन के लिए स्वतंत्र प्रभार की राज्य मंत्री रहीं। 6 अगस्त 2002 से 16 मई 2004 तक मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री भी रह चुकी हैं। द्रौपदी मुर्मू ओडिशा में दो बार रायरंगपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक रही हैं।
बात आंकड़ों की करें तो 2017 की तरह ही इस बार भी बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को अपने पसंदीदा उम्मीदवार को चुनने में किसी तरह की दिक्कत नहीं आने वाली। बीजेपी की मूल चिंता अपने सहयोगियों को मनाकर भी रखने की है, खासकर बिहार के सीएम नीतीश कुमार को। हाल के दिनों में उनके रुख ने बीजेपी को चिंता में डाल रखा है। पहले उन्होंने अपने नेता आरसीपी सिंह को राज्यसभा टिकट देने से इनकार किया। कहा गया कि उनके बीजेपी के करीब जाने से वह नाराज थे। फिर ऐसी चर्चा उठी कि वह खुद राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। हालांकि नीतीश ने इसका भी खंडन किया। इस तमाम उठापटक के बीच इस चुनाव में बीजेपी के सामने अब भी सबसे बड़ी चुनौती नीतीश कुमार को अपने साथ बनाए रखने की है। अगर बीजेपी ऐसा करने में सफल रही तो राष्ट्रपति चुनाव के बहाने एक बड़ा राज्य उनके नियंत्रण में बना रहेगा। 2024 के लिहाज से बिहार बीजेपी के लिए अहम है जहां से 40 लोकसभा सांसद चुने जाते हैं।
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Draupadi Murmu: इसके अलावा बीजेपी के सामने दूसरी बड़ी चुनौती नवीन पटनायक और जगन रेड्डी को अपने पाले में बनाए रखने की भी है। जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तभी से तकरीबन हर बड़े मौके पर ये दोनों बीजेपी के फैसलों के साथ रहे हैं। इस बार भी अंकों का गणित यह है कि अगर एनडीए कुनबा एकजुट रहा और इन दोनों नेताओं में किसी एक का साथ मिल गया, तब तो बीजेपी को अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनने में किसी तरह की परेशानी नहीं होगी। लेकिन अब तक के जो संकेत हैं, उनके मुताबिक नवीन पटनायक ने इस बार राष्ट्रपति उम्मीदवार का नाम सुनने के बाद ही अपने पत्ते खोलने का इशारा किया है। वहीं बीजेपी की कोशिश सिर्फ नंबर जुटाने की ही नहीं होगी, बल्कि विपक्ष के खेमे में सेंध लगाने की भी होगी, ताकि 2024 से पहले वह उसका मनोबल तोड़ सकें। 2017 में भी ऐसा हुआ था जब नीतीश कुमार को बीजेपी अपने पाले में करने में सफल हुई थी। तब नीतीश विपक्षी खेमे में थे और आरजेडी के साथ मिलकर सरकार चला रहे थे।
राष्ट्रपति चुनाव में भले ही विपक्ष के पास अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए पर्याप्त संख्या बल नहीं है, पर इस मौके का उपयोग वह 2024 से पहले एक मंच पर आने के लिए रिहर्सल के रूप में करना चाहता था। लेकिन अब तक के संकेत बताते हैं कि इसमें उसे अपेक्षित सफलता मिलती नहीं दिख रही है। उलटे हर बार की तरह इस बार भी कई स्तर पर इनमें बड़ी दूरी नजर आने लगी है। इसके अलावा सबके-सब अपने-अपने राग अलाप रहे हैं। हर बार की तरह सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न हो रही है कि इस मुहिम का अगुवा कौन होगा। इस बार हालांकि शुरुआत तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने की। उन्होंने दिल्ली आकर तमाम विपक्षी नेताओं से अलग-अलग बात की। हाल के दिनों में उनकी भी राष्ट्रीय हसरतें छिपी हुई नहीं हैं। वह राष्ट्रपति चुनाव के बहाने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी केंद्रीय भूमिका तलाश रहे थे। इसी बीच ममता बनर्जी ने भी इस भूमिका पर अपना हक जताया और दिल्ली आकर सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश करनी चाही। लेकिन ममता को भी इसमें बड़ी कामयाबी नहीं मिली। अब तक ममता के साथ हमेशा खड़े रहे अरविंद केजरीवाल ने भी इस बार उनके लिए उतना उत्साह नहीं दिखाया। ममता बनर्जी ने विपक्षी दलों की मीटिंग में बीजेडी को भी न्योता भेजा, लेकिन नवीन पटनायक की पार्टी ने हमेशा की तरह इस राजनीति से खुद को अलग रखा।
Draupadi Murmu: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा प्रमुख जे. पी. नड्डा को भाजपा की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए आम सहमति के उम्मीदवार के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित विपक्षी दलों के कई नेताओं के साथ-साथ एनडीए के सहयोगियों से बात करने के लिए अधिकृत किया गया है। सूत्रों ने कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार चुनाव से बचने के लिए विपक्ष के साथ आम सहमति बनाने की कोशिश कर रही है। चर्चा है कि राजनाथ सिंह ने कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव से भी बात की है। रक्षा मंत्री ने गठबंधन सहयोगी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी बात की है, जो जनता दल-यूनाइटेड के प्रमुख हैं। पता चला है कि भगवा पार्टी के वरिष्ठ नेता ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सुप्रीमो शरद पवार, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा और अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं से भी इस मुद्दे पर बातचीत की है। बीजेपी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर आम सहमति बनाने की कोशिश कर रही है और विपक्षी नेताओं को कोई नाम नहीं सुझाया गया है। एक सूत्र ने कहा, ‘राजनाथ सिंह ने यह भी जानने की कोशिश की है कि विपक्षी नेता आखिर क्या सोच रहे हैं।
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