“लड़की का निजी अंग पकड़ना दुष्कर्म का मामला नहीं”, उच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कही ये बात

अदालत ने कहा, “इस मामले के तथ्यों को देखते हुए आरोपियों के खिलाफ धारा 354(बी) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9 के तहत समन जारी किया जाना चाहिए, जो एक नाबालिग बच्चे के साथ गंभीर यौन अपराध के लिए दंड की व्यवस्था देती है।”

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  • Publish Date - March 20, 2025 / 07:49 PM IST,
    Updated On - March 20, 2025 / 08:25 PM IST
High Court's decision : image Source- symbolic

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HIGHLIGHTS
  • कासगंज के विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती
  • आरोपियों के खिलाफ धारा 354(बी) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9 के तहत समन

प्रयागराज: Holding a girl’s private parts is not a rape, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यौन अपराध के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि एक लड़की का निजी अंग पकड़ना और उसकी पायजामी का नाड़ा तोड़ना, आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म) का मामला नहीं है, बल्कि ऐसा अपराध धारा 354 (बी) (किसी महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला) के तहत अपराध की श्रेणी में आता है।

यह आदेश दो व्यक्तियों द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने पारित किया। इन आरोपियों ने कासगंज के विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देते हुए यह पुनरीक्षण याचिका दायर की थी।

इस मामले के तथ्यों के मुताबिक, विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो अधिनियम) की अदालत में एक आवेदन दाखिल करके आरोप लगाया गया था कि 10 नवंबर, 2021 को शाम करीब पांच बजे शिकायतकर्ता महिला अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ ननद के घर से लौट रही थी।

दाखिल आवेदन में आरोप लगाया गया था महिला के गांव के ही रहने वाले पवन, आकाश और अशोक रास्ते में उसे मिले और पूछा कि वह कहां से आ रही है। इसके अनुसार जब महिला ने बताया कि वह अपनी ननद के घर से लौट रही है, तो उन्होंने बेटी को मोटरसाइकिल से घर छोड़ने की बात कही। इसके अनुसार महिला ने बेटी को उनके साथ जाने दिया।

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Holding a girl’s private parts is not a rape

दाखिल आवेदन में आरोप लगाया गया था कि आरोपियों ने रास्ते में ही मोटरसाइकिल रोक दी और लड़की का निजी अंग पकड़ लिया और आकाश लड़की को खींचकर पुलिया के नीचे ले गया जहां उसने लड़की की पायजामी का नाड़ा तोड़ दिया। इसके अनुसार लड़की चीखने लगी और चीख सुनकर दो व्यक्ति वहां पहुंचे, जिसके बाद आरोपियों ने उन्हें तमंचा दिखाकर जान से मारने की धमकी दी और मौके से भाग गए।

पीड़ित लड़की और गवाहों का बयान दर्ज करके निचली अदालत ने दुष्कर्म के अपराध के लिए आरोपियों को समन जारी किया। तथ्यों को देखने के बाद अदालत ने कहा, “मौजूदा मामले में आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ आरोप यह है कि इन्होंने लड़की का निजी अंग पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया, लेकिन गवाहों के हस्तक्षेप की वजह से वे लड़की को छोड़कर मौके से फरार हो गए।”

अदालत ने 17 मार्च को दिए अपने निर्णय में कहा, “आरोपी व्यक्तियों का लड़की के साथ दुष्कर्म करने का दृढ निश्चय था, यह संदर्भ निकालने के लिए पर्याप्त तथ्य नहीं है। आकाश के खिलाफ आरोप केवल यह है कि उसने लड़की को पुलिया के नीचे ले जाने का प्रयास किया और उसकी पायजामी का नाड़ा तोड़ा।”

अदालत ने कहा, “ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपी ने लड़की के साथ दुष्कर्म किया। आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ लगाए गए आरोपों और इस मामले के तथ्यों से दुष्कर्म का मामला नहीं बनता।”

अदालत ने कहा, “इस मामले के तथ्यों को देखते हुए आरोपियों के खिलाफ धारा 354(बी) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9 के तहत समन जारी किया जाना चाहिए, जो एक नाबालिग बच्चे के साथ गंभीर यौन अपराध के लिए दंड की व्यवस्था देती है।”

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क्या इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह कहा कि लड़की के निजी अंग पकड़ना दुष्कर्म नहीं है?

हाँ, अदालत ने कहा कि केवल लड़की के निजी अंग पकड़ने और पायजामी का नाड़ा तोड़ने से आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म) का मामला नहीं बनता, बल्कि यह धारा 354(बी) (किसी महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9 के तहत अपराध की श्रेणी में आता है।

क्या आरोपियों को सजा मिली?

फिलहाल नहीं। निचली अदालत ने आरोपियों के खिलाफ दुष्कर्म के आरोपों में समन जारी किया था, लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि मामला दुष्कर्म का नहीं, बल्कि यौन उत्पीड़न का बनता है। अब उन पर धारा 354(बी) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9 के तहत कार्रवाई होगी।

अदालत ने यह फैसला किन आधारों पर दिया?

अदालत ने कहा कि कोई ठोस सबूत नहीं मिला कि आरोपी लड़की के साथ दुष्कर्म करने के दृढ़ निश्चय से आए थे। केवल लड़की को पकड़ना, खींचना और पायजामी का नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म की कानूनी परिभाषा में नहीं आता।

क्या इस फैसले के बाद दुष्कर्म की परिभाषा बदल जाएगी?

नहीं। यह फैसला एक विशिष्ट मामले के तथ्यों पर आधारित है। भारतीय कानून में दुष्कर्म की परिभाषा (धारा 375, आईपीसी) स्पष्ट रूप से बताई गई है, और यह निर्णय केवल इस विशेष घटना पर लागू हुआ है।