High Court on Live in relationship: चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उस लिव-इन जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने से इनकार कर दिया, जिसमें पुरुष पहले से ही शादीशुदा था और उसके बच्चे भी थे। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि इस प्रकार के मामलों में संरक्षण देना सामाजिक और नैतिक मूल्यों के खिलाफ होगा और गलत कार्यों को बढ़ावा देगा।
जस्टिस संदीप मौदगिल ने अपने फैसले में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहा कि हर नागरिक को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार है। हालांकि, यह अधिकार कानून की सीमाओं में होना चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि ऐसे मामलों को मंजूरी दी जाती है, तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत दंडनीय अपराध, द्विविवाह, को प्रोत्साहन देने के समान होगा।
High Court on Live in relationship: कोर्ट ने यह कहते हुए कड़ा रुख अपनाया कि एक विवाहित व्यक्ति का लिव-इन रिलेशनशिप में रहना सामाजिक और नैतिक मूल्यों के खिलाफ है। ऐसे संबंधों को वैध मानने से समाज में परिवार के महत्व और गरिमा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के रिश्ते माता-पिता और परिवार की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाते हैं।
हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में विवाह को एक पवित्र और सामाजिक रूप से अहम रिश्ता बताया। जस्टिस मौदगिल ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों के बीच का संबंध नहीं है, बल्कि यह सामाजिक स्थिरता और नैतिक मूल्यों की नींव है। उन्होंने कहा कि आधुनिक जीवनशैली और पश्चिमी संस्कृति को अपनाने से भारतीय पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्य कमजोर हो रहे हैं।
High Court on Live in relationship: कोर्ट ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह को कानूनी, सामाजिक और नैतिक महत्व दिया गया है। यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों का हिस्सा है। हालांकि, आधुनिक जीवनशैली और पश्चिमी संस्कृति का बढ़ता प्रभाव हमारे नैतिक और पारिवारिक मूल्यों को कमजोर कर रहा है। कोर्ट ने चेतावनी दी कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का दुरुपयोग करके सामाजिक ताने-बाने को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए।
याचिका दायर करने वाले जोड़े ने दावा किया कि उन्हें अपने रिश्तेदारों से जान का खतरा है। हालांकि, हाईकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत कोई भी शादीशुदा व्यक्ति अवैध संबंध के लिए संरक्षण की मांग नहीं कर सकता।
High Court on Live in relationship: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का यह फैसला भारतीय समाज में विवाह की पवित्रता और महत्व को बनाए रखने के लिए एक मजबूत संदेश है। यह फैसला इस बात पर जोर देता है कि व्यक्तिगत अधिकारों का उपयोग समाज और कानून की मर्यादा में रहकर ही किया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि यदि कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा है, तो उसका लिव-इन रिलेशनशिप में रहना सामाजिक और नैतिक मूल्यों के खिलाफ है। ऐसा करने से परिवार और समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
नहीं, यह फैसला विशेष रूप से उन मामलों पर केंद्रित है, जहां पुरुष या महिला पहले से शादीशुदा है। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में संरक्षण देना भारतीय दंड संहिता की धारा 494 (द्विविवाह) का उल्लंघन होगा।
हाईकोर्ट ने विवाह को भारतीय समाज का आधार बताया और कहा कि यह केवल दो व्यक्तियों का संबंध नहीं है, बल्कि सामाजिक स्थिरता और नैतिक मूल्यों की नींव है। कोर्ट ने पश्चिमी जीवनशैली के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त की, जो भारतीय पारिवारिक मूल्यों को कमजोर कर सकता है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 21 के तहत सभी को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार है, लेकिन यह कानून और सामाजिक मर्यादा के तहत ही होना चाहिए। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उपयोग समाज के नैतिक ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचा सकता।
यह फैसला विवाह की पवित्रता और भारतीय समाज में उसके महत्व को बनाए रखने का संदेश देता है। कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत अधिकारों का उपयोग सामाजिक और कानूनी मर्यादा का पालन करते हुए ही किया जाना चाहिए।