नयी दिल्ली, एक जून (भाषा) भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के उस परामर्श को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है जिसमें कहा गया था कि आरटीपीसीआर जांच में एक बार संक्रमित मिलने वाले व्यक्ति दोबारा यह जांच नहीं कराये। अदालत ने इस मुद्दे पर मंगलवार को केन्द्र और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की एक पीठ ने एक वकील की याचिका पर आईसीएमआर को भी नोटिस जारी किया और उसे भी अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया।
वकील ने आईसीएमआर के चार मई के परामर्श को चुनौती देते हुए याचिका में कहा है कि वह और उनके परिजन के पहली बार 28 अप्रैल को संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी और उसके बाद 17 दिनों से ज्यादा समय तक पृथकवास में रहने के बावजूद उनकी दोबारा जांच नहीं हो पा रही है।
उन्होंने दलील की कि चार मई को जारी किया गया परामर्श ‘‘मनमाना, भेदभावपूर्ण और एक विरोधाभासी स्थिति पैदा करता है क्योंकि प्रतिवादियों (केन्द्र, आईसीएमआर और दिल्ली सरकार) द्वारा जारी कई अन्य अधिसूचनाओं के जरिये एक नेगेटिव आरटीपीसीआर रिपोर्ट को अनिवार्य किया गया है।’’
उन्होंने परामर्श में उस खंड (क्लॉज) को भी समाप्त करने का अनुरोध किया है जिसमें रैपिड एंटीजन जांच (आरएटी) या आरटीपीसीआर जांच में संक्रमित पाये गये व्यक्ति द्वारा फिर से आरटीपीसीआर जांच कराये जाने पर रोक लगाई गई है।
याचिकाकर्ता ने अपने और अपने परिवार के सदस्यों की फिर से जांच कराने की अनुमति देने का अनुरोध भी किया है।
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देवेंद्र अनूप
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