उच्च न्यायालयने बलात्कार पीड़िता को जवाब दाखिल करने की अनुमति दी

उच्च न्यायालयने बलात्कार पीड़िता को जवाब दाखिल करने की अनुमति दी

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  • Publish Date - October 10, 2024 / 08:36 PM IST,
    Updated On - October 10, 2024 / 08:36 PM IST

नयी दिल्ली, 10 अक्टूबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक यौन उत्पीड़न पीड़िता और उसके पिता को उस याचिका पर जवाब दाखिल करने की अनुमति दे दी है जिसमें कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करके एक वृत्तचित्र में नाबालिग की पहचान उजागर करने को लेकर फिल्म निर्माता निशा पाहुजा और ओटीटी मंच नेटफ्लिक्स के खिलाफ कार्रवाई का अनुरोध किया गया है।

वृत्तचित्र ‘टू किल ए टाइगर’ की कहानी झारखंड के एक गांव पर आधारित है। यह एक ऐसे व्यक्ति पर आधारित है जो अपनी 13 वर्षीय बेटी के लिए न्याय की लड़ाई लड़ रहा है, जिसका तीन पुरुषों द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया था। इस वृत्तचित्र को 96वें अकादमी पुरस्कार, 2024 में ‘सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र फीचर’ श्रेणी में नामांकित किया गया था।

पीड़िता और उसके पिता ने याचिका में पक्षकार बनने का अनुरोध किया।

मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला ने उनकी याचिका स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘नए पक्षकार बनाये गए प्रतिवादियों को तीन सप्ताह के भीतर अपने जवाबी हलफनामे दाखिल करने की अनुमति दी जाती है। अगर कोई प्रत्युत्तर हलफनामा है तो उसे अगली सुनवाई से पहले दाखिल किया जाना चाहिए।’’

अदालत ने याचिकाकर्ता को अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने की भी अनुमति दी, जिसमें नेटफ्लिक्स पर प्रसारित वृत्तचित्र से नाबालिग पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों की ‘‘संवेदनशील तस्वीर’’ युक्त एक सीलबंद लिफाफा भी शामिल है।

मामले की अगली सुनवाई सात जनवरी को होगी।

अदालत ने पहले तुलिर चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा दायर एक याचिका पर केंद्र के साथ-साथ कनाडा के टोरंटो में रहने वाली फिल्म निर्माता पाहुजा और ओटीटी मंच को नोटिस जारी किया था और उन्हें अपने जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था।

वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी पाहुजा की ओर से अदालत में पेश हुईं।

पीठ ने पहले फिल्म की स्ट्रीमिंग पर यह कहते हुए रोक लगाने से इनकार कर दिया था कि यह मार्च से जनता के लिए उपलब्ध थी।

याचिकाकर्ता के अनुसार, फिल्म ने बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर कर दी है, जो घटना के समय नाबालिग थी, क्योंकि इसमें उसका चेहरा नहीं छिपाया गया है। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी, ‘‘फिल्म की शूटिंग साढ़े तीन साल तक चली। उन्होंने (पाहुजा) नाबालिग की पहचान छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया। फिल्म निर्माण में करीब 1,000 घंटे लगे हैं। बेचारी लड़की से (अपनी आपबीती) दोहराने के लिए कहा गया। सभी हिस्से प्रतिवादी पांच नेटफ्लिक्स की जानकारी में हैं।’’

वकील ने कहा कि इस वृत्तचित्र ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम और नाबालिग बलात्कार पीड़ितों की पहचान की सुरक्षा को नियंत्रित करने वाले कानूनों के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।

हालांकि, प्रतिवादियों में से एक ने याचिकाकर्ता की दलीलों का विरोध किया और कहा कि फिल्म की शूटिंग नाबालिग के माता-पिता की अनुमति से की गई थी और उसकी सहमति से उसके वयस्क होने के बाद रिलीज की गई थी।

वकील ने दलील दी, ‘‘एक बार जब बच्ची वयस्क हो जाती है, तो वह चाहे तो अपने साथ हुई घटना के बारे में बात कर सकती है।’’

भाषा अमित माधव

माधव