एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लिए ‘दोनों हाथ सही सलामत’ होने संबंधी दिशानिर्देश प्रतिगामी: न्यायालय
एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लिए ‘दोनों हाथ सही सलामत’ होने संबंधी दिशानिर्देश प्रतिगामी: न्यायालय
नयी दिल्ली, 21 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के दिशा-निर्देशों में निर्दिष्ट दिव्यांगता वाले छात्रों को एमबीबीएस पाठ्यक्रम करने के लिए ‘दोनों हाथ सही सलामत’ होने की अनिवार्यता ‘‘पूरी तरह से प्रतिगामी’ है और इसमें पक्षपात की बू आती है।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने पाया कि दिशा-निर्देशों में निर्धारित किया गया है कि चिकित्सा पाठ्यक्रम में पात्रता के लिए ‘दोनों हाथ सही सलामत होना, उनमें संवेदना होना, पर्याप्त शक्ति होना’ आवश्यक है।
पीठ ने कहा, ‘‘ ‘दोनों हाथ सही सलामत होने’ का यह निर्देश संविधान के अनुच्छेद 41, दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में निहित सिद्धांतों और आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम (दिव्यांग जन अधिकार अधिनियम, 2016) के लाभकारी प्रावधानों के बिल्कुल विपरीत है।’’
शीर्ष अदालत ने पिछले साल अक्टूबर में पारित अपने फैसले का हवाला दिया, जिसमें एनएमसी को एमबीबीएस पाठ्यक्रम के संबंध में अधिनियम के तहत निर्दिष्ट दिव्यांगता वाले छात्रों के प्रवेश के संबंध में 13 मई, 2019 के दिशानिर्देशों के स्थान पर संशोधित नियम और दिशानिर्देश जारी करने के लिए कहा गया था।
उसने कहा कि फैसले के अनुसरण में, एनएमसी ने एक अन्य मामले में शीर्ष अदालत को आश्वासन दिया कि वह फैसले का अनुपालन करने के लिए विषय विशेषज्ञों की एक नई समिति का गठन करेगी।
न्यायालय ने कहा, ‘‘हम इस मामले में 3 मार्च, 2025 को सुनवाई का निर्देश देते हैं ताकि इस बात पर विचार किया जा सके कि क्या राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने इस अदालत के निर्णयों के अनुसार संशोधित दिशानिर्देश तैयार किए हैं।’’
इस बीच पीठ ने एनएमसी को निर्देश दिया कि मौजूदा स्थिति बताते हुए एक हलफनामा दाखिल किया जाए।
भाषा वैभव माधव
माधव

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