नयी दिल्ली, 27 अक्टूबर (भाषा) संस्थागत मध्यस्थता को “और अधिक बढ़ावा” देने तथा ऐसे मामलों में अदालती हस्तक्षेप को कम करने के उद्देश्य से सरकार ने एक मसौदा विधेयक पेश किया है, जिसमें प्रस्तावित संशोधनों पर विचार मांगे गए हैं।
विधि मंत्रालय के विधिक मामलों के विभाग ने मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) विधेयक, 2024 के मसौदे पर टिप्पणियां आमंत्रित करते हुए कहा है कि “इसका उद्देश्य संस्थागत मध्यस्थता को और बढ़ावा देना, मध्यस्थता में अदालती हस्तक्षेप को कम करना और मध्यस्थता कार्यवाही का समय पर निष्कर्ष सुनिश्चित करना है”।
यह मसौदा विधेयक पूर्व विधि सचिव और पूर्व लोकसभा महासचिव टी. के. विश्वनाथन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति द्वारा मध्यस्थता क्षेत्र में प्रस्तावित सुधारों पर अपनी रिपोर्ट विधि मंत्रालय को सौंपे जाने के कुछ महीने बाद आया है।
मसौदा विधेयक में ‘आपातकालीन मध्यस्थता’ की अवधारणा का प्रस्ताव किया गया है।
प्रस्तावित संशोधन में कहा गया है कि मध्यस्थ संस्थाएं अंतरिम उपाय प्रदान करने के उद्देश्य से मध्यस्थ न्यायाधिकरण के गठन से पहले “आपातकालीन मध्यस्थ” की नियुक्ति का प्रावधान कर सकती है।
नियुक्त आपातकालीन मध्यस्थ (मध्यस्थता) परिषद द्वारा निर्दिष्ट तरीके से कार्यवाही का संचालन करेगा।
साथ ही, मसौदा विधेयक में वर्तमान कानून के कुछ खंडों को भी हटा दिया गया है।
हटाए गए खंडों में से एक, संसद सत्र के दौरान, जारी किए जाने वाले प्रस्तावित अधिसूचनाओं को दोनों सदनों में रखे जाने से संबंधित है।
भाषा प्रशांत रंजन
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